प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि व शाही ईदगाह विवाद मामले में मंगलवार को ईदगाह पक्ष की ओर से सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता ने कहा कि 1968 में किया गया समझौता लिमिटेशन एक्ट से बाधित है। ऐसे में यह वाद पोषणीय नहीं है। इसे खारिज किया जाना चाहिए। वहीं मंदिर पक्ष ने समझौते को अवैध बताया। अगली सुनवाई 24 मई को होगी। न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की कोर्ट में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता अफजाल अहमद ने कहा कि 1968 में दोनों पक्षकारों की ओर से विधिमान्य रूप से समझौता किया गया है। सभी वादकारियों को 1968 से ही उक्त समझौता पत्र के बारे में जानकारी है। 1974 में डिक्री हुई। ऐसे में लगभग 50 वर्ष बाद वाद दायर करना लिमिटेशन एक्ट से बाधित है।वादी की ओर से अदालत को जानबूझकर गुमराह किया जा रहा है। विवादित संपत्ति ईदगाह 1669 से तामीर और वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 के प्रावधानों से आच्छादित है। ऐसे में ईदगाह से संबंधित मामला वक्फ बोर्ड ट्रिब्यूनल में ही चलाया जा सकता है।सिविल कोर्ट को वाद सुनने का कोई अधिकार नहीं है। वादीगण ने जानबूझकर मस्जिद के उपासना स्वरूप को बदलने की नीयत से यह वाद दाखिल किया है। यह वाद विशेष उपासना अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है। अत: खंडित किए जाने योग्य है।वहीं, मंदिर पक्ष की ओर से वाद संख्या पांच पर वादी के अधिवक्ता सिद्धार्थ श्रीवास्तव ने कहा कि शाश्वत बाल रूप भगवान की संपत्ति का किसी भी अन्य व्यक्ति की ओर से किसी भी प्रकार से समझौता या बंधक या विक्रय नहीं किया जा सकता है।इसलिए 1968 में किया गया समझौता शून्य है। इसमें न्यायालय को विचारण कर गुणदोष, साक्ष्य व सर्वे इत्यादि के अनुसार अंतिम रूप से पक्षों की सुनवाई करते हुए निस्तारित करना न्यायोचित होगा। सुनवाई के दौरान श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और संस्थान के अधिवक्ता हरेराम त्रिपाठी, अधिवक्ता महेंद्र प्रताप सिंह, अधिवक्ता विनय शर्मा, आशुतोष पांडेय, तनवीर अहमद, नसीरुज्जमां, रीना एन सिंह व राणा प्रताप सिंह पक्ष रखने के लिए मौजूद रहे। श्रीकृष्ण जन्मभूमि व शाही ईदगाह विवाद मामले में मंदिर पक्ष की ओर से सवाल उठाए जाने और कोर्ट के आदेश के क्रम में मंगलवार को ईदगाह पक्ष की ओर से अधिवक्ता तसनीम अहमदी व महमूद प्राचा ने वकालतनामा दाखिल किया।