चक बिखेर रहा भूमाफिया और सिस्टम का गठजोड़
गोरखपुर। 52 ग्राम पंचायतों में चकबंदी की प्रकिया चल रही है। इसमें खेल भी निराले हो रहे हैं। भूमाफिया, दबंगों और कर्मचारियों के गठजोड़ ने इसे गंदी बना दी है। चकबंदी नक्शे के आधार पर होती है, लेकिन कुछ जगहों पर खतौनी के आधार पर नक्शा नहीं है। इसी का फायदा उठाकर भू-माफिया और दबंग लोग अपनी जमीन की मालियत अधिक करा लेते हैं। जब चकों को बांधा जाता है तो कम मालियत वाले काश्तकारों को नुकसान होता है और अधिक मालियत वाले फायदे में रहते हैं। कुछ जगहों पर जब गांव के लोगों ने चकबंदी के इस खेल को पकड़ा तो विरोध करना शुरू कर दिया। इसके बाद कई लोग फरियाद लेकर प्रशासन के पास दौड़ रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर कैंपियरगंज के बुढ़ेली गांव को ही ले सकते हैं। यहां किसानों ने विरोध करके चकबंदी रुकवा दी है। आरोप है कि समतल की जगह ताल और सड़क की अच्छी जमीनों की जगह अनुपयोगी भूमि दी जा रही है। दो फसली भूमि के बजाय एक फसली भूमि की जमीन उपलब्ध कराई जा रही है।
इसी तरह बांसगांव तहसील के मलांव एहतमाली, कनईल एहतमाली, कुश्मा तथा रुद्राइन उर्फ माझीगावा गांव में बंदोबस्त कार्य खतौनी के अनुसार नक्शा बनाकर नहीं किया जा रहा है। नक्शा और खतौनी में असमानता की वजह से चकबंदी प्रभावित है। इसका खामियाजा किसान भुगत रहे हैं। उनकी जमीनों पर भू-माफियाओं ने कब्जा कर लिया है। इन गांवों के लोगों ने डीएम से फरियाद लगाई है।
कनईल एहतमाली और रुद्राईन उर्फ माझीगावा के किसानों का कहना है कि बंदोबस्त से खतौनी तो मिल रही है। लेकिन, किसानों का नंबर नक्शे में नहीं है। इससे खेतों की पैमाइश नहीं हो पा रही, जिससे जुताई और बुवाई बाधित है। चकबंदी के अभाव में कनईल अहतेमाली गांव के 408 लोगों का नंबर खतौनी में तो है, लेकिन नक्शे से गायब है। वहीं कुश्मा में 329 लोगों का नंबर खतौनी में है। उनका नक्शा नहीं है। इसका फायदा उठाते हुए किसानों की भूमि पर भूमि माफियाओं ने कब्जा कर लिया है।
चकबंदी में खेत से खेत तक पड़ताल करने का नियम है। अधिवक्ताओं का कहना है कि गांवों में जाने वाली टीम के सदस्य घर बैठे विवरण दर्ज कर देते हैं। इससे विवाद उत्पन्न होता है। बंदोबस्त चकबंदी अधिकारी ने बताया कि जो भी समस्याएं आई हैं। उनका समाधान किया जाएगा।
जिले में सदर सदर तहसील के जिंदापुर, आमबाग रामगढ़, जंगल तिनकोनिया, जंगल रामगढ़ उर्फ रजही, आजाद नगर, ताल नवर, नेतवर पट्टी, जहदा, जंगल कौड़िया, खुटहन खास, अलावा खजनी के 22, कैंपियरगंज के तीन, चौरीचौरा के आठ और सहजनवां तीन गांवों में चकबंदी प्रक्रिया जारी है।
वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीभागवत राय ने बताया कि चकबंदी इसलिए होती है कि किसानों के बिखरे हुए चकों को इकट्ठा करके एक या दो चक बैठा दिया जाए। लेकिन अधिकांश जगहों पर चक बंधने के बजाय बिखेर रहा है। इसमें मालियत का खेल भी होता है। जो लोग गांव से बाहर रहते हैं, या कम जानकार होते हैं। अक्सर उनकी खेती की जमीन की मालियत कम लगा दी जाती है।
कुछ लोगों के प्रभाव में चकबंदी कर्मचारी उनके जमीन की मालियत अधिक लगा देते हैं। इससे जब चकों को बांधा जाता है तो कम मालियत वाले काश्तकार को नुकसान होता है। अधिक मालियत वाले फायदे में रहते हैं। कई बार चक बांधते समय मूल चक का ध्यान नहीं दिया जाता है। जबकि मूल चक को छूते हुए या उसके आसपास ही नया चक बनना चाहिए। चकबंदी में रकबा को घटाने और बढ़ाने का खेल होता है। कई बार किसी सड़क के किनारे, उपयोगी जमीन को ग्राम सभा में निकाल दिया जाता है। फिर उसे दोबारा किसान की चक में शामिल करने के बदले अनुचित लाभ लिया जाता है।
अधिवक्ताओं के मुताबिक, चकबंदी में गड़बड़ी के संबंध में सीओ के वहां पहली अपील की जाती है। इसमें नक्शा के छोटे होने, जमीन के रकबा के घटने-बढ़ने, किसी काश्तकार का नाम छूटने सहित अन्य के लिए निगरानी होती है। इसका परीक्षण किया जाता है। यहां मामले का निस्तारण नहीं होने पर बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी के वहां अपील होगी। यदि इस न्यायालय में भी राहत नहीं मिली तो उप संचालक चकबंदी में अपील की जाएगी। वहां पर निगरानी होगी। किसकी, क्या गलती है और क्यों गड़बड़ी हुई है। इसका परीक्षण करने के बाद आदेश जारी होता है। यदि किन्हीं कारणों से फैसला नहीं हो सका तो आगे मामला हाईकोर्ट ही जाएगा।
हमारे पास खतौनी है, जिसमें हमारा नाम गाटा संख्या के साथ दर्ज है। लेकिन, नक्शा में गाटा संख्या का जिक्र ही नहीं है। इसी कारण चकबंदी की प्रक्रिया कई साल से लंबित है। अगर बंदोबस्त विभाग, चकबंदी की प्रक्रिया पूरी करके जमीनों को किसानों के हक में ले आए। तभी अवैध कब्जे से राहत मिल सकेगी।हम चाहते हैं कि गांव का नक्शा नए सिरे से तैयार हो। नक्शे से गायब किसानों के नंबर शामिल किए जाएं, जिससे किसान अपनी जमीनों पर काबिज हो सकें। क्योंकि इस क्षेत्र में किसानों की भूमि पर कब्जा कर लिया गया है। नक्शा नहीं होने से लोग परेशान हैं।
मेरे खेत का चक बदलने में मालियत कम लगाई जा रही है। सड़क किनारे जमीन की जगह रेहार (उपज नहीं होने वाली ) जमीन दी जा रही है। इससे तो हमारा काफी नुकसान होगा।
ताल की जमीन को समतल कर रहे हैं, समतल की जगह ताल और नदी में जमीन दे रहे हैं। दो फसली वाली खेती के बदले एक फसली की जमीन दी जा रही है। ऐसे में चकबंदी किसानों के लिए कैसे फायदेमंद होगी। यह जानकारी अधिकारी नहीं दे पा रहे हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता डाॅ. दिग्विजय सिंह ने कहा कि चकबंदी का उद्देश्य तो काफी अच्छा है। किसान का मूल चक जहां पर है। वहीं आसपास में ही उनको चक मिलना चाहिए। लेकिन, लेखपाल और कर्मचारियों की गड़बड़ी और नियमों का पालन नहीं करने से किसानों को परेशान होना पड़ता है। मुकदमा लड़ने की नौबत आ जाती है। ऐसे वाद लंबे समय तक निस्तारित नहीं हो पाते हैं।
वरिष्ठ अधिवक्ता शिवयत्न भारती ने कहा कि चकबंदी में खेत से खेत में पड़ताल करने का प्रावधान है। इसमें लगे कर्मचारी मौके पर पड़ताल नहीं करते हैं। कुछ लोगों के प्रभाव में आकर चकबंदी कर्मचारी विवरण मनमानी तरीके से भर देते हैं। इस वजह से विवाद होता है। जब मामला सामने आता है तो लोगों को हाईकोर्ट तक के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी शशिकांत शुक्ला ने कहा कि चकबंदी की प्रक्रिया जिन गांवों में चल रही है। वहां की कोई समस्या आने पर किसानों से बातचीत की जा रही है। बुढ़ेली सहित अन्य गांवों के किसानों ने जो शिकायत की है। उसका निस्तारण किया जाएगा। नियमानुसार चकबंदी पूरी कराई जाएगी।