कल है वट सावित्री व्रत, जानें शुरू मुहूर्त और संपूर्ण पूजा ,मिलेगा अखण्ड सौभाग्य का वरदान
वाराणसी। सनातन धर्म में वट सावित्री पूजा का विशेष महत्व है.हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि को ये विशेष पूजा की जाती है. इस बार ये व्रत सोमवार यानी 30 मई को मनाया जाएगा.इस दिन महिलाएं व्रत रखने के साथ ही खास विधि से वट वृक्ष के नीचे पूजा करती हैं.जिससे उन्हें अखण्ड सौभाग्य के वर के साथ सुख समृद्धि का वरदान भी मिलता है.इस दिन वट वृक्ष के नीचे कथा सुनने की भी परम्परा है.काशी के जाने माने ज्योतिषी और विद्वान कन्हैया महाराज ने बताया कि इस दिन महिलाएं व्रत रखने के साथ ही वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ के नीचे कच्चे सूत से 7,11,51 या 108 बार परिक्रमा करने के साथ दीप प्रज्वलित कर सावित्री और सत्यवान की कथा सुनती हैं.इसके अलावा वट वृक्ष के नीचे पूजा के दौरान मौसमी फल और श्रृंगार के समान चढ़ाने की भी परम्परा है.इस तरह पूजा करने से भगवान उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
बन रहा खास संयोग
यही वजह है कि इस दिन महिलाएं वट वृक्ष के नीचे पूजा अर्चना करती है.इस बार ये व्रत आने वाले सोमवार यानी 30 मई को मनाया जाएगा.इस बार इस तिथि पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है जो इस व्रत के फल को कई गुना अधिक बढ़ाने वाला है.
वट सावित्री व्रत 2022 मुहूर्त
ज्येष्ठ अमावस्या की शुरुआत: 29 मई, रविवार, दोपहर 02:54 बजे
ज्येष्ठ अमावस्या की समाप्ति: 30 मई, सोमवार, शाम 04:59 बजे
सर्वार्थ सिद्धि योग: प्रात: 07:12 बजे से प्रारंभ
सुकर्मा योग: प्रात: काल से प्रारंभ
वट सावित्री व्रत के लिए पूजन सामग्री:
बांस की लकड़ी से बना बेना (पंखा), लाल और पीले रंग का कलावा, अगरबत्ती या धूपबत्ती, पांच प्रकार के 5 फल, तांबे के लोटे में पानी, पूजा के लिए सिन्दूर (बिना इस्तेमाल किया हुआ) और लाल रंग का वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए. इस दिन वट वृक्ष के नीचे कथा सुनने की भी परम्परा है.काशी के जाने माने ज्योतिषी और विद्वान कन्हैया महाराज ने बताया कि इस दिन महिलाएं व्रत रखने के साथ ही वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ के नीचे कच्चे सूत से 7,11,51 या 108 बार परिक्रमा करने के साथ दीप प्रज्वलित कर सावित्री और सत्यवान की कथा सुनती हैं.इसके अलावा वट वृक्ष के नीचे पूजा के दौरान मौसमी फल और श्रृंगार के समान चढ़ाने की भी परम्परा है.इस तरह पूजा करने से भगवान उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं.
बरगद के पेड़ की पूजा क्यों करते हैं
1. ज्येष्ठ आमवस्या यानी वट सावित्री व्रत के दिन वट वृक्ष की पूजा इसलिए करते हैं, ताकि सुहागन महिलाओं को अखंड सौभाग्य एवं सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद प्राप्त हो. पति की उम्र लंबी हो.
2. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावित्री वट वृक्ष के नीचे ही अपने मृत पति के प्राण वापस लाई थीं. उन्होंने अपने पतिव्रता धर्म से यमराज को प्रसन्न कर आशीर्वाद प्राप्त किया था. इस वजह से महिलाएं ज्येष्ठ अमावस्य को वट वृक्ष की पूजा करती हैं.
3. संतान प्राप्ति के लिए भी वट सावित्री व्रत वाले दिन बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं. सावित्री ने यमराज से 100 पुत्रों की माता होने का वरदान मांगा था. यमराज ने उनको वरदान दे दिया, जिसकी वजह से सत्यवान के प्राण भी उनको लौटाने पड़े थे क्योंकि बिना सत्यवान के रहते सावित्री 100 पुत्रों की माता नहीं बन सकती थीं.
4. बरगद का वृक्ष विशाल होता है, उसकी शाखाओं से जटाएं निकली हुई होती हैं. ऐसी मान्यता है कि उन जटाओं से सावित्री का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस वजह से वट सावित्री व्रत के दिन बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं.
5. बरगद के पेड़ में देवी देवताओं का वास होता है. बरगद की जड़ में ब्रह्मा जी, छाल में भगवान विष्णु और शाखाओं में भगवान शिव का वास मानते हैं. इस वजह से बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं और एक साथ त्रिदेव का आशीष प्राप्त करते हैं.
6. त्रेतायुग में प्रभु श्रीराम को जब वनवास हुआ था, तो वे तीर्थराज प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम में गए थे. वहां पर उन्होंने भी वट वृक्ष की पूजा की थी. बरगद के पेड़ को अक्षयवट भी कहा जाता है.
सभी बाधाओं से मिलती है मुक्ति
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक वट वृक्ष में ब्रह्मा,विष्णु और भगवान शंकर का वास है.इसके अलावा इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी के पूजन का भी विधान है.वट सावित्री की पूजा से सुहागिन महिलाओं के पति की आयु लम्बी होती है और वट वृक्ष के परिक्रमा से जीवन मे आने वाली सभी बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है.