केडीएम स्कूल में ‘यूनियन जैक’ उतारकर ‘तिरंगा’ फहराया था शांति शरण विद्यार्थी ने ! — निर्भय सक्सेना
बरेली। देश की आजादी के बाद स्वतंत्रता सेनानियों की पीड़ा को कम ही सुना गया उन्हें वह सम्मान भी नहीं मिला जिसके वह वास्तव में हकदार भी थे। उनके जजवे को भी कम ही लोग जानते हैं । बरेली नगर के ऐसे ही एक सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शान्ति शरण विद्यार्थी ने भी भारत छोड़ो आन्दोलन में कुंवर दया शंकर एडवर्ड मेमोरियल स्कूल, बरेली में लहरा रहे ब्रिटिश हुकूमत के यूनियन जैक को उतार कर ‘भारतीय तिरंगा’ फहरा दिया था। जिस कारण शांति शरण विद्यार्थी को साथियों सहित 9 अगस्त 1942 को गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया था ।
शांति शरण विद्यार्थी उस समय के डी ई एम इंटर कालेज में ही अपनी पढ़ाई कर रहे थे। श्री शांति शरण जी बताते थे तिरंगा झंडा फहराने के बाद वह साथियों के साथ जुलूस लेकर कोतवाली तक पहुँचे थे। तभी उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया । जेल में उनके साथ महानंद सेवक, कृष्ण मुरारी असर, प्रताप चंद्र आज़ाद, दीना नाथ मिश्र, नौरंग लाल तथा धर्म दत्त वैद्य सभी को एक ही बैरक में रखा गया था । लगभग ढाई माह बरेली सेंट्रल जेल में बंद रहने के बाद उन्हें रिहा किया गया था । स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शान्ति शरण विद्यार्थी का जन्म आठ अक्टूबर 1921को बरेली में राघव राम वर्मा एडवोकेट के मंझले पुत्र के रूप में हुआ था । जेल जाने के कारण उनकी पढ़ाई बीच मे ही छूट गई । बाद में शांति शरण विद्यार्थी ने पूर्वोत्तर रेलवे में भंडार लेखा विभाग में नौकरी की। लगभग 40 वर्षों रेलवे की नौकरी के दौरान उन्होंने ईमानदारी और कर्तव्य परायणता के कई उदाहरण प्रस्तुत किए जिसका वर्णन कबीर पुरस्कार विजेता समाजसेवी जे सी पालीवाल ने एक समारोह में भी किया था । उनका विवाह बदायूँ के बाबू उमा़शंकर की पुत्री शीला देवी से हुआ था ।
उनके पाँच पुत्र तथा एक पुत्री हुए जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर अपने अपने क्षेत्र में सफल रहे। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शान्ति शरण विद्यार्थी का स्वर्गवास 4 मई 2013 को प्रात: काल हुआ। नियमित टिबरी नाथ मंदिर जाने वाले परम शिव भक्त विद्यार्थी अंतिम समय तक सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे । अपनी किशोरावस्था में वह श्रद्धा नंद सेवक दल से भी जुड़े रहे तथा क्रांतिकारियों की सूचनाएँ पहुँचाने का भी काम किया । नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बरेली आगमन पर उन्होंने पंखा झलकर उनकी सेवा की थी। आज़ादी के बाद वह देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार से बहुत दुखी होते थे और कहते थे इस दिन के लिए देश को आज़ाद नहीं कराया था। ईमानदारी और सत्यनिष्ठा उनकी ज़िंदगी के सबसे बड़े उसूल थे। वह कहते थे आज़ादी के बाद भारतीय नागरिक अपने कर्तव्यों को भूल रहा है और देश की सार्वजनिक सम्पत्ति को अपनी सम्पत्ति मान रहा है जो बहुत ग़लत है । आज़ादी की रजत जयंती पर सन् 1972 में उन्हें तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी ने ताम्र पत्र भेंट किया था । उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों तथा उनके परिवार को मिलने वाले कोटे तथा आरक्षणो को कभी स्वीकार नहीं किया उनका मानना था कि आज़ादी की लड़ाई उन्होंने इसके लिए नहीं लड़ी थी ।
उनके पुत्र राकेश विद्यार्थी, राजन विद्यार्थी चार्टेड एकाउन्टेन्ट अपने पिता की स्मृति में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शान्ति शरण विद्यार्थी स्मारक ट्रस्ट भी चला रहे हैं जिसके द्वारा लगातार समाज सेवा के कार्य किए जा रहे हैं । संजय नगर शमशानघाट पर ट्रस्ट की और से स्टील की बैठने वाली बेंच भी भेट की गई।