फिलीस्तीन-इजराइल जंग को दो साल पूरे: इस्लाम अम्न व शांति का पैग़ाम देता है, न कि जंगो-जिदाल का : मौलाना शहाबुद्दीन

बरेली। आज से दो साल पहले इसी दिन हमास और इजरायल की जंग शुरू हुई थी, और ये जंग अभी तक जारी है। जंग के दो साल मुकम्मल होने पर आल इंडिया मुस्लिम जमात ने एक प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन किया, जिसको संबोधित करते हुए जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने कहा कि फिलीस्तीन के शहर गजा में इजराइल द्वारा बम बारी से हजारों लोगों की जाने जा चुकी है, पूरा शहर खंडहर बन चुका है, जिसकी तस्वीरों को दुनिया देख रही है ।और इजराइल को ये सब जियादती करने का मौका दिया कट्टरपंथी हमास ने। अगर हमास 7 अक्टूबर को इजराइलियों को बंधक नहीं बनाता तो ये दिन देखने को नहीं मीलते। मौलाना ने कहा कि हमास की 7 अक्टूबर की हिंसक कार्रवाई ने न केवल इसराइल-फ़लस्तीन संघर्ष को और भड़काया बल्कि लंबे समय से चल रही शांति प्रक्रिया को पूरी तरह पटरी से उतार दिया। जहाँ एक ओर कूटनीतिक प्रयासों और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के ज़रिए फ़लस्तीन के लिए न्यायसंगत समाधान की दिशा में कुछ उम्मीदें बन रही थीं, वहीं कट्टरपंथी संगठन हमास के गलत निर्णय ने पूरी प्रक्रिया को विफल कर दिया। इस कार्रवाई से इसराइल को सैन्य कार्रवाई का बहाना मिला, जिससे दोनों पक्षों के बीच हिंसा और अविश्वास की खाई और गहरी हो गई। नतीजतन, जो राजनीतिक समाधान संवाद और कूटनीति से निकल सकता था, वह अब खून-खराबे और प्रतिशोध के चक्र में फँस गया है। मौलाना ने कहा कि दूसरी ओर, हमास की नीतियाँ और रणनीतियाँ ग़ाज़ा के निर्दोष नागरिकों विशेष रूप से बच्चों और महिलाओं के लिए तबाही का सबब बनी हैं। संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्टों के अनुसार, ग़ाज़ा में अब तक हज़ारों बच्चे और महिलाएँ इस हिंसा की भेंट चढ़ चुकी हैं। यह त्रासदी स्पष्ट करती है कि हमास की कटृरपंथी राजनीति ने फ़लस्तीनी जनता को सुरक्षा, सम्मान और अमन के बजाय सिर्फ़ दर्द, विस्थापन और विनाश दिया है। सच्चा नेतृत्व वह है जो अपनी जनता को बचाए, न कि उन्हें युद्ध की आग में झोंक दे। इस्लाम में आतंकवाद, हिंसा और निर्दोषों की हत्या के लिए कोई स्थान नहीं है। निर्दोष लोगों की हत्या और अराजकता फैलाना इस्लामी शरीअत में किसी भी रूप में जायज़ नहीं ठहराया जा सकता। क़ुरआन कहता है कि जिसने एक बेगुनाह को क़त्ल किया उसने पूरी इंसानियत को क़त्ल किया (क़ुरआन 5:32)। जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उन उग्रवादी विचारधाराओं की निंदा की जो धर्म का सहारा लेकर नौजवानों को भड़काती हैं। “कटृरपंथी संगठन इस्लाम की नहीं बल्कि एक कट्टर और राजनीतिक सोच की नुमाइंदगी करता है। यह सोच सूफ़ी परंपरा की मोहब्बत और अमन से कोसों दूर है। फ़लस्तीन के मुद्दे का असली हल शांति, संवाद और राजनीतिक प्रक्रिया के रास्ते से ही संभव है। यासिर अराफ़ात ने फ़लस्तीन की आज़ादी और सम्मान के लिए संघर्ष करते हुए हमेशा अमन और बातचीत को प्राथमिकता दी थी। उन्होंने बार-बार यह कहा कि “अमन ही फ़लस्तीन का असली रास्ता है।” उनका दृष्टिकोण आज भी यह याद दिलाता है कि असली नेतृत्व वही होता है जो अपनी जनता को हिंसा से दूर रखे और उन्हें स्थिरता, सुरक्षा और उम्मीद की दिशा में ले जाए। जमात का मानना है कि फ़लस्तीन का भविष्य हथियारों में नहीं, बल्कि हिकमत, मुहब्बत और मुतालिबे-इंसाफ़ में है ठीक उसी राह पर, जिस पर यासिर अराफ़ात और फ़लस्तीन अथॉरिटी ने दुनिया के सामने मिसाल पेश की। उलमा ने कहा कि भारत और फिलीस्तीन के रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं, जब से गाजा में इजराइल से जंग शुरू हुई, तो मानवीय आधार पर सबसे पहले भारत सरकार ने राहत सामग्री गाजा के लिए भेजी। भारत सरकार ने हमेशा फिलीस्तीनी रियासत को तस्लीम किया है, और सालाना भारत फिलीस्तीन की आर्थिक मदद भी करता है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुख्य रूप से मौलाना मुजाहिद हुसैन, मुफ्ती फारूख रजवी, मौलाना अनीसुर रहमान, तहसीन रजा खां, शाहिद रजवी, फैसल इस्लाम आदि उपस्थित रहे।