टीईटी अनिवार्यता के फैसले से शिक्षक समाज में गहरी चिंता, संघ ने न्यायालय और सरकार से किया हस्तक्षेप का आग्रह

बरेली। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1 सितम्बर 2025 को दिए गए आदेश के तहत देशभर के सभी सेवारत प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक शिक्षक/शिक्षिकाओं को सेवा में बने रहने और पदोन्नति के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य कर दिया गया है। इस आदेश के अनुसार जिन शिक्षकों की सेवा अवधि मात्र 5 वर्ष शेष है, उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति से छूट दी गई है, लेकिन पदोन्नति के लिए उनके लिए भी टीईटी उत्तीर्ण करना जरूरी होगा। इस फैसले से शिक्षक समुदाय में गहरी बेचैनी और असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो गई है। आल इंडिया प्राइमरी टीचर्स फेडरेशन (अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ) और उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ ने संयुक्त रूप से इस आदेश को मानवीय दृष्टिकोण से अनुचित बताते हुए केंद्र सरकार एवं न्यायालय से तत्काल हस्तक्षेप की अपील की है। संघ ने कहा कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति नियुक्ति समय की योग्यता और सेवा नियमावली के आधार पर हुई थी, उन्हें नई शर्तों के आधार पर बाध्य करना अन्यायपूर्ण है। संगठन का कहना है कि 2011 से पहले वैध भर्ती प्रक्रियाओं के तहत नियुक्त हुए लाखों शिक्षक/शिक्षिकाओं को अब अचानक टीईटी की अनिवार्यता थोपना न केवल उनके मानवीय गरिमा के खिलाफ है, बल्कि उनकी सेवा और पदोन्नति को भी खतरे में डाल देगा।
संगठन ने तर्क दिया कि टीईटी एक प्रवेश स्तर की पात्रता परीक्षा है, जिसे शिक्षण गुणवत्ता मापने का पैमाना नहीं माना जा सकता। देश के लाखों वरिष्ठ शिक्षक/शिक्षिकाएं वर्षों से बच्चों को पढ़ाते आ रहे हैं और उनके अनुभव को नजरअंदाज कर अनिवार्य टीईटी का नियम लागू करना शिक्षा व्यवस्था के लिए भी घातक सिद्ध होगा। शिक्षक संगठनों ने यह भी बताया कि बीएड/बीपीएड, इंटरमीडिएट उत्तीर्ण, स्नातक में 50 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त करने वाले, मृतक आश्रित नियुक्त शिक्षक/शिक्षिकाएं तथा प्रशिक्षण से मुक्त कई शिक्षक टीईटी के आवेदन के पात्र ही नहीं हैं। ऐसे में उन्हें पद से हटाना या पदोन्नति से वंचित करना पूरी तरह अव्यावहारिक और अन्यायपूर्ण होगा। संघ ने चेतावनी दी है कि यदि इस आदेश की समीक्षा नहीं की गई तो देश के ग्रामीण और दूरदराज इलाकों के स्कूलों में पहले से ही चल रही शिक्षक कमी की समस्या और गंभीर हो जाएगी। इससे बच्चों के शिक्षा के अधिकार पर भी प्रतिकूल असर पड़ेगा। आल इंडिया प्राइमरी टीचर्स फेडरेशन ने सरकार से अपील की है कि विभागीय अधिकारियों और शिक्षक संगठनों के साथ आपसी विचार-विमर्श कर इस निर्णय पर पुनर्विचार किया जाए और ऐसा नीतिगत समाधान निकाला जाए जिससे माननीय न्यायालय के निर्देशों का सम्मान भी हो और शिक्षकों के अधिकार भी सुरक्षित रहें। ज्ञापन देने बालो में नरेश गंगवार, योगेश गंगवार, बलवीर सिंह सहित सैकड़ों शिक्षक मौजूद थे।