सर्व समाज जागरूकता अभियान और अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा ने बलिदान दिवस पर दी श्रद्धांजलि
बदायूँ। सर्व समाज जागरूकता अभियान भारत एवं अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के संयुक्त तत्वावधान में महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी शहीद रामप्रसाद बिस्मिल, क्रांतिकारी शहीद अशफ़ाक उल्ला खां, क्रांतिकारी शहीद ठाकुर रोशन सिंह का “बलिदान दिवस” शास्त्री नगर स्थित नितिन तिवारी के आबास पर धूमधाम से मनाया गया। सर्वप्रथम मुख्य अतिथि/मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने तीनों क्रांतिकारी शहीद के चित्रों के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। सर्व समाज जागरूकता अभियान की जिला संयोजिका, ब्राह्मण महासभा महिला प्रकोष्ठ की जिला उपाध्यक्षा रानी शर्मा ने अध्यक्षता की । आज के बलिदान दिवस के कार्यक्रम का संचालन सर्व समाज जागरूकता अभियान के जिला संयोजक एबं ब्राह्मण महासभा जिला उपाध्यक्ष इं प्रमोद कुमार शर्मा ने किया। मुख्य अतिथि/मुख्य वक्ता अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि दुनियां में पैदा होकर मरना जरूर है लेकिन देश को आजाद कराने के जुनून में फांसी के तख्ते को हंसते हंसते चूमने वाले तीनों क्रांतिकारी शहीद पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल, शहीद अशफ़ाक उल्ला खां, शहीद ठाकुर रोशन सिंह का नाम अमर है। देश को आजादी दिलाना, शोषण,अत्याचार खिलाफ लड़ना धर्म युद्ध है, वह किसी सन्यासी की जंगल में की गई तपस्या से कम नहीं है। महान स्वतंत्रता सेनानी क्रांतिकारी शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म ११जून १८९७ को उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के खिरनीबाग मौहल्ले में हुआ था। पिता मुरलीधर और माता मूलमती थीं। शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह आर्य समाज से जुड़े और सत्यार्थ प्रकाश का संपूर्ण अध्ययन किया।१९१६ में देश को आजाद कराने में जुट गए। बलिदानियों ने १९२०में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में योगदान दिया, लेकिन चौरी चौरा काण्ड के बाद आंदोलन वापिस लेने पर वह क्रांतिकारी बन गए। सबसे पहले मातृ वेदी संस्था बनाई उसके बाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन कर देश की आजादी को लड़ने के लिए युवाओं को तैयार किया। क्रान्तिकारियों के लिए हथियार मुहैया कराने के लिए ७अगस्त १९२५को शाहजहांपुर में बैठक बुलाई। इस बैठक में ९अगस्त १९२५को ब्रिटिश शासन की खजाने से भरी ट्रेन को लूटने की योजना बनी। ९अगस्त १९२५ को काकोरी स्टेशन पर रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में क्रान्तिकारियों ने खजाना लूटकर काकोरी काण्ड की घटना को अंजाम दिया। बाद में उन्हें गिरफ्तार किया गया और मैनपुरी षडयंत्र एवं काकोरी काण्ड का दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुनाई। १९दिसंबर १९२७को गोरखपुर जेल में सुबह साढ़े छह बजे फांसी दे दी गई। बिस्मिल की लाइनों से -“सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है। देखना है जोर कितना, बाजु ए कातिल में है।”शत शत नमन। राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने आगे कहा कि दौरे इंकलाब की जब भी बात होगी तो शहीदों की कतार में क्रांतिकारी अशफ़ाक उल्ला खां का नाम भी वतन के सजदे का हकदार होगा। पहले उर्दू की शायरी लिखने वाले अशफ़ाक उल्ला खां जब पण्डित रामप्रसाद बिस्मिल से मिले तो उनके कलम की स्याही भी लाल होने लगी। क्रांतिकारी शहीद अशफ़ाक उल्ला खां का जन्म २२अक्तुबर १९००को शाहजहांपुर में हुआ था। आपके पिता शफीकुल्ला खान और माता मजहरूनिशा थीं। आपके बड़े भाई रियासत उल्ला खां के बिस्मिल गहरे दोस्त थे उन्होंने अशफ़ाक और बिस्मिल को मिलाया। क्रांतिकारी शहीद अशफ़ाक उल्ला खां शुरू में गांधी जी से प्रभावित होकर असहयोग आन्दोलन से जुड़े लेकिन बाद में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन कर देश को आजाद कराने में जुट गए। ०९अगस्त १९२५को काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ७दिसंबर १९२६को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें फैजाबाद जेल में रखा गया। वहां डी एस पी खान ने आकर कहा कि अशफ़ाक उल्ला खां जी आप बिस्मिल के खिलाफ गवाही दे दें,आपको रिहा कर दिया जाएगा। बिस्मिल इस देश को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं। तब क्रांतिकारी अशफ़ाक ने कहा कि बिस्मिल जी को मैं अच्छी तरह जानता हूं वह अगर हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे वह तुम्हारे से अच्छा होगा वह राष्ट्र हमारे भारतवासियों का होगा। मुझे फांसी एक बार ही होगी डी एस पी खान मेरे सामने से हट जाओ वरना तुम्हारे साथ बुरा हो सकता है। क्रांतिकारी शहीद अशफ़ाक उल्ला खां को १९दिसंबर १९२७ को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई। उन्होंने पवित्र कुरान हाथ में लेकर फांसी के तख्ते को हंसते हंसते चूम लिया। शत शत नमन।राष्ट्रीय अध्यक्ष कवि माधव मिश्र ने आगे कहा कि क्रांतिकारी शहीद ठाकुर रोशन सिंह साहसी और निशानेबाज थे। क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह का जन्म २२ जनवरी १८९२को उत्तर प्रदेश के जिला शाहजहांपुर के नबादा गांव में हुआ था। आपके पिता ठाकुर जंगी सिंह और माता कौशल्या देवी थीं। आपके माता पिता ने ब्रिटिश हुक़ूमत के जुल्मों सितम के खिलाफ ठाकुर रोशन सिंह को तैयार किया था और वह उनसे कहते थे वेटा तुम्हें देश आजाद कराना है। क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह पहले गांधी जी से मुलाकात कर असहयोग आंदोलन में शामिल हुए और बाद में क्रांतिकारी बने। ठाकुर रोशन सिंह एक भारतीय को अंग्रेज सिपाही द्वारा पिटते हुए देखा तब उसकी बंदूक छीनकर बरेली में उसी के ऊपर बंदूक से गोली मारकर घायल कर दिया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और दो साल की सश्रम सजा दी गई। वह बरेली सेंट्रल जेल से रिहा हुए। शाहजहांपुर पहुंचकर बिस्मिल की हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए। उन्होंने हथियार खरीदने के लिए बमरौली डकैती कांड किया। जब भी क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल में गुफ्तगू होती तब यही बात होती कि ब्रिटिश हुक़ूमत के खिलाफ कौन पहले शहीद होगा। वही मां का पहला लाल कहलायेगा। ठाकुर रोशन सिंह को २६दिसंबर १९२५को काकोरी काण्ड के तहत गिरफ्तार कर लिया गया जबकि इतिहासकारों के अनुसार वह इस कांड के समय वहां नहीं थे। १९दिसंबर १९२७को काकोरी काण्ड के तहत प्रयागराज (इलाहाबाद) जेल में फांसी दे दी गई। शत शत नमन। अध्यक्षता करते कार्यक्रम संयोजक एवं व्यबस्थापक नितिन तिवारी रहे और बिचार व्यक्त किये। नितिन तिवारे ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में रानी शर्मा, संतोष तिवारी,कु काव्य तिवारी, निधी, कु नव्या तिवारी,डा अबनीत कुमार, मनोज कुमार, रामोतार,दया
आदि उपस्थित रहे।