रूस से खास समर्थन लेने गए हैं प्रधानमंत्री मोदी; तीन राज्यों को साधने की कोशिश में भाजपा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के पुराने विश्वसनीय, रणनीतिक और सामरिक साझेदार देश रूस से खास तोहफा चाहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की इच्छा द्विपक्षीय और आपसी हित के अलावा पुतिन के जरिए चीन पर दबाव बनावाने की है ताकि भारत और चीन के बीच रिश्तों को 2020 में हुई तनातनी से पहले की स्थिति में लाया जा सके। रूस ने पहले भी परमाणु करार से लेकर कई मसलों पर भारतीय हितों के लिए चीन को मनाया था। पिछले कुछ रूस का रूख बदला हुआ था। भारत के अमेरिका से मजबूत होते रिश्तों के बाद इसमें थोड़ी कठिनाई देखी गई, लेकिन बाइडेन प्रशासन के साथ दिल्ली की केमिस्ट्री और जयशंकर की कूटनीति ने इसे नया रोडमैप दे दिया है। राष्ट्रपति पुतिन भी यूक्रेन हमले के बाद से लगातार क्षेत्रीय गठजोड़ बढ़ा रहे हैं। इसमें चीन और रूस का रिश्ता काफी अहम है। लखनऊ में गोमती नदी का जल स्तर बढ़ रहा है। कहां नदी में पानी न के बराबर था और कहां भंवर बनने की संभावना दिख रही है? उत्तर प्रदेश के दोनों उप मुख्यमंत्री भी काफी चर्चा में हैं। लखनऊ में लोगों को लग रहा है कि उपचुनाव के बाद जल्द ही कुछ नया होगा, बड़ा होगा। भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष भी उत्तर प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। जाने के पहले उनसे उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक भी मिल चुके थे। यह सभी को पता है कि केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने मुख्यमंत्री योगी को चिट्ठी लिखी है। ओम प्रकाश राजभर फिर नाराज बताए जाते हैं। केशव प्रसाद मौर्या के बारे में कहा जा रहा है कि वे नए अंदाज में हैं। भाजपा के तमाम सलाहकारों ने लोकसभा चुनाव में सीटें कम आने का ठीकरा दलित, अन्य पिछड़ा वर्ग की नाराजगी, बेलगाम नौकरशाही, संविदा पर बिना आरक्षण की नौकरियां जैसे मुद्दों पर फोड़ा था। तमाम घटनाक्रमों के बीच खास बात यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनकी टीम निश्चिंत है। हो भी क्यों न? मुख्यमंत्री दबाव जो मैनेज करना सीख गए हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीटें घटीं, लेकिन बसपा तो 10 से सीधे शून्य पर आ गई। थोड़ी सी कसर रह गई वरना सपा 2004 का रिकॉर्ड तोड़ देती। अब भाजपा के रणनीतिकार मानने लगे हैं कि इसमें मायावती की पार्टी बसपा के उम्मीदवारों के मजबूती से न लड़ पाने की बड़ी भूमिका है। आकाश आनंद पर बीच चुनाव में बसपा प्रमुख की कार्रवाई ने भी खेल बनाने की बजाय बिगाड़ ही दिया। उ.प्र. भाजपा के एक बड़े नेता इसमें अपनी पार्टी के रणनीतिकारों को कोसने से पीछे नहीं हटते। बताते हैं कि बसपा के मतदाताओं में यह बात तेजी से फैली कि भाजपा बसपा को घुटने के बल बैठाने में लगी है। लिहाजा बसपाई वोट प्रतिक्रिया में इंडिया गठबंधन को पड़ गए। बताते हैं इस विश्लेषण ने बसपा को राहत पहुंचाई है। बसपा सुप्रीमो अब एक बार फिर आकाश आनंद को स्थापित करने के साथ-साथ बसपा में जान डालने की योजना बनाने में जुट गई हैं। बागपत के एक जाट नेता चौधरी अजीत सिंह के जमाने में उनके आवास के आस-पास अक्सर देखे जाते थे। जयंत चौधरी के कमान संभालने के बाद 50 साल के नेता ने अपने उपस्थिति और बढ़ा दी थी। आजकल कटे कटे से हैं। यह हाल केवल इस जाट नेता का नहीं है, बताते हैं कि तमाम वफादार इस समय जयंत के घर का रास्ता भूल गए हैं। हालांकि जयंत चौधरी अपनी जड़ मजबूत करने की हर कोशिश कर रहे हैं। चौधरी चरण सिंह के जमाने के किसान नेता ने कहा कि आप बताओ? संजीव बालियान और जयंत चौधरी में अंतर क्या है? चौधरी अजीत ने तो किसान आंदोलन को समर्थन देकर उसमें जान डाल दी थी और उनके बेटे ने भाजपा से हाथ मिला लाया। पाया कुछ नहीं, गाया खूब। अब बताओ भला कौन सा मुंह लेकर जाएं? पुलिस की लाठी, पानी की बौछार हमने खाई, लड़के किसानों के शहीद हुए और किसान नेता के पोते को मंत्री पद मिल गया। आंध्र के सीएम चंद्रबाबू नायडू बड़े हार्ड बार्गेनर हैं। उन्हें अमरावती को खूबसूरत राजधानी बनाना है। आंध्र प्रदेश में सिंचाई, बिजली और मूल भूत जरूरतों को टॉप पर रखकर राज्य का विकास करना है। इन सबके लिए ढाई लाख करोड़ रुपये चाहिए। तभी अमरावती चमक में सिंगापुर को मात देगी, जबकि प्रदेश के खजाने की हालत खस्ता है। लिहाजा नायडू दिल्ली आए थे। प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, रक्षा मंत्री भूतल परिवहन मंत्री, वाणिज्य मंत्री, नीती आयोग समेत सभी से मिलकर गए हैं। भारी भरकम मांग भी रख दी है। चाहते हैं कि आम बजट 2024-25 में भी कुछ विशेष हो जाए। जो चिंता नायडू की है, वही नीतीश कुमार की भी है। केन्द्र को बता दिया है कि बिहार में पुल पर पुल गिर रहे हैं। विकास की तस्वीर बदलने की जरूरत है। दोनों नेताओं का अंदाज भी निराला है। दोनों दिल्ली से कह रहे हैं आप काम करिए समर्थन पूरा है। हम जाएंगे नहीं। आपके साथ ही रहेंगे, लेकिन विशेष राज्य का दर्जा…..। भाजपा के रणनीतिकारों को भी पता है कि ओडिशा में सरकार है। जय जय जगन्नाथ जारी रखना है। ओडिशा की भी माली हालत का सबको पता है। देखिए आगे क्या होता है। हेमंत सोरेन दोबारा झारखंड के मुख्यमंत्री बन गए हैं। उनकी कैबिनेट में दीपिका पांडे सिंह कांग्रेस कोटे से मंत्री बन गई हैं। बताते हैं झारखंड में सब ठीक हो गया है। सूत्र बताते हैं कि चंपई सोरेन सीएम बने रहते तो थोड़ा मुश्किल होती। भ्रष्टचार के आरोप में जेल जाकर लौटे हेमंत ने राह आसान कर दी है। हालांकि, भाजपा मुख्यालय के सूत्रों का मानना है कि न केवल झारखंड में बल्कि महाराष्ट्र में चुनौती बढ़ गई है। हरियाणा से आने वाले नेता का कहना है कि इस बार कांग्रेस ने हरियाणा में हुड्डा को फ्री हैंड दे दिया है। इसके कारण भी थोड़ी चुनौती है। लिहाजा पार्टी ने तीनों राज्यों में जमीनी आकलन, सर्वे आदि का काम तेज कर दिया है ताकि तीनों न सही कम से कम दो राज्यों में भाजपा या एनडीए की सरकार बन जाए। खबर यह भी है कि इन तीनों राज्यों में भी पार्टी के चाणक्य काफी सक्रिय हैं।