जब हरियाणा के मुख्यमंत्री चौ. देवीलाल ने अपनी पगड़ी उतार कर रख दी थी राकेश कोहरवाल की मेज पर
बरेली। वैसे कई पत्रकारों ने बरेली से बाहर निकल पत्रकारिता क्षेत्र में बरेली का नाम किया है। राकेश कोहरवाल बड़े पत्र- पत्रिका समूह में काम करके पत्रकारिता को जिस ऊंचाई तक पहुंचे ऐसा सौभाग्य कम ही लोगों को मिला था। दैनिक जनसत्ता के मित्र लोग बताते हैं कि एक बार हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री अब स्वर्गीय देवी लाल दैनिक ‘जनसत्ता’ के दिल्ली कार्यालय में पहुंचे और दैनिक जनसत्ता के हरियाणा डेस्क प्रभारी राकेश कोहरवाल को नमस्कार कर उनकी मेज पर अपनी पगड़ी उतार कर रख दी और “कहा = राकेश या तो इस पगड़ी पर लात मार दे या इसे मुझे पहना दे”। और पगड़ी धारण कर मामला सामान्य हुआ। बाद में वार्ता के बाद मुख्यमंत्री देवीलाल जी का गुस्सा शांत हुआ। ऐसा था अब स्वर्गीय हो चुके राकेश कोहरवाल जी का दबदवा। यह बात मुझे दैनिक जनसत्ता में रिपोर्टर रहे मनोज मिश्र ने बताई। वैसे मेरे तो राकेश कोहरवाल, जो पंजाबपुरा मोहल्ला निवासी होने के नाते पहले से ही संबंध रहे। वह अक्सर अपने पिता लक्ष्मी नारायण सक्सेना एडवोकेट, जो बरेली में कायस्थ सभा के अध्यक्ष भी रहे, के साथ मेरे पिता स्वर्गीय सुरेश चन्द्र सक्सेना के पास कायस्थ सभा से जुड़ाव के चलते चर्चा के लिए आते रहते थे। वर्ष 1974 में ‘दैनिक विश्व मानव ’बरेली शुरू होने पर एक ही संस्थान में रहते हुए उनसे और भी जुड़ाव हो गया। राकेश जी से ही समाचार लेखन की कई विधाओं पर चर्चा होती थी। राकेश कोहरवाल बताया करते थे कि खबर में तथ्यों पर ज्यादा जोर होना चाहिए। अगर खबर है तो उसमें तथ्यों का समावेश कर दूसरे पक्ष का वर्जन सहित संपूर्ण खबर जानी चाहिए। इसी को लेकर कभी कभी संपादकीय विभाग के साथियों में टेबिल स्टोरी को लेकर वाकयुद्ध जैसी स्थिति बनती थी। राकेश कोहरवाल की वर्ष मई 1975 में बरेली कालेज में नकल संबंधी एक खबर पर तो तो ‘दैनिक विश्व मानव’ में काफी तोड़फोड भी हुई पर खबर का खंडन नहीं छपा। राकेश कोहरवाल दैनिक ‘विश्व मानव’ में कुछ समय रहकर नई दिल्ली में दिल्ली प्रेस की ‘भूभारती’ पत्रिका में चले गए। वहां से चंडीगढ़ के दैनिक ‘ट्रिब्यून’ में चले गये। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दैनिक ट्रिब्यून से उनका सफर दैनिक ‘जनसत्ता’ दिल्ली तक ले आया जहां उनकी कई स्टोरियों ने धूम मचायी। उद्दयन शर्मा के संपादन में कलकत्ता के ‘रविवार’ साप्ताहिक में 14 जुलाई 1979 को छपी राकेश कोहरवाल की संजय गांधी से भेंटवार्ता ने काफी तहलका मचाया। जिस पर राकेश कोहरवाल पर संजय गांधी ने मानहानि का केस किया था और राकेश अदालती कार्रवाई में भी फंसे रहे को संजय गांधी की मौत के बाद ही समाप्त हुआ। इस स्टोरी को छापने से पहले उन्होंने अपने मित्रों को भी उसे पढ़वाया था। हुआ यूं नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्टस इंडिया एन यू जे आई के जून 1979 में भुवनेश्वर (उड़ीसा) में हुए सम्मेलन में मेरा व राकेश जी का उड़ीसा जाना तय हुआ। सम्मेलन में जाने के लिए लखनऊ से पत्रकारों के लिए एक विशेष रेल बोगी ट्रेन में लगायी गयी थी। हम व राकेश कोहरवाल बरेली से गये तथा लखनऊ के पत्रकारों के साथ कलकत्ता रवाना हुये। कलकत्ता के रास्ते में राकेश जी ने ट्रेन में उस बहुचर्चित संजय गांधी की भेंटवार्ता को पांडुलिपि कई पत्रकारों को पढ़वाकर उनकी राय ली। जबकि उस स्टोरी की एक प्रति ‘रविवार’ साप्ताहिक को पहले ही कलकत्ता भेज चुके थे। जब वह स्टोरी 14 जुलाई 1979 के अंक में ‘रविवार’ में कबर पेज पर छपी तो उस पर तहलका मच गया और इन्द्रा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने उन पर मानहानि का मुकदमा कर दिया। यह मुकदमा संजय गांधी की मौत के बाद ही समाप्त हो पाया। मुझे राकेश कोहरवाल जी के साथ एन यू जे आई के कई सम्मेलन में जयपुर, पटना, दिल्ली, लुधियाना, कलकत्ता, लखनऊ, गोरखपुर, लखीमपुर खीरी, बनारस, आदि कई स्थानों पर जाने का अवसर मिला। तथा हम लोग साथ ही सम्मेलन में गये। बरेली से इन सम्मेलन में कई पत्रकारों सर्वश्री शंकर दास, अनिल सक्सेना, भगवान स्वरूप, विनोद भसीन, जे डी बजाज एडवोकेट, रामदयाल भार्गव, अनुपम मार्कण्डेय आदि ने भी समय समय पर सम्मेलन में भाग लिया। यू पी जर्नलिस्ट एसोसिएशन (उपजा) के बरेली में ‘उपजा प्रेस क्लब’ के लिए राकेश कोहरवाल ने हरियाणा के मुख्यमंत्री देवीलाल जी को बरेली बुलवाकर 25 हजार रूपये की आर्थिक मदद दिलवाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पत्रकारिता जगत में जहां दैनिक जेबीजी टाइम्स के कार्यकारी संपादक रहे। वहीं दैनिक जागरण दिल्ली ब्यूरो, माया ब्यूरो, जनसत्ता एक्सप्रेस, सरिता आदि कई मैगजीन व अखबारों के लिए भी लेखन कार्य किया। बीमारी से भी हमेशा उनका साथ बना रहा। दिल्ली में मार्ग दुर्घटना में घायल होकर वह कई वर्षों तक बिस्तर पर रहे। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी थी। बाद में परिजनों के कहने पर दिल्ली में प्रेस कालोनी का मकान छोड़कर बरेली आ गये। यहां पर ‘दैनिक जागरण’ बरेली से जुड़े। इसी दौरान भी उनका दुखों ने पीछा नहीं छोड़ा और उनके इकलोते युवा पुत्र की बरेली के सेटेलाइट पर मार्ग दुर्घटना में मौत हो गई। इसके बाद वह काफी टूट गये पर बाद में उन्होंने हिम्मत कर बरेली से तुषार चन्द्र एडवोकेट के साथ ‘पांचाल रूहेला’ दैनिक अखबार निकालने का प्लान तैयार कर उसे मूर्त रूप दिया था जो बाद में बंद हो गया है। 9 जनवरी 1951 को जन्में राकेश जी का 6 फरवरी 2009 को निधन हो गया था। भारतीय पत्रकारिता संस्थान के सुरेन्द्र बीनू सिन्हा ने जे बी सुमन स्मृति पुरस्कार दिया। राकेश कोहरवाल की पत्रकारिता पर लिखी किताब का विमोचन कार्य भी अधूरा ही पड़ा रह गया। (कलम बरेली की से साभार)