चुनावी राजनीति में परिवारवाद से बरेली जिला भी अछूता नहीं रहा : निर्भय सक्सेना
बरेली। बरेली में जिन राजनीतिक लोगो ने चुनावी राजनीति में कदम रखा उनमें अभी तक संतोष कुमार गंगवार ही सबसे लंबी पारी खेलकर बरेली में अभी भी सत्तारूढ़ दल बीजेपी के सांसद बने हुए हैं। केंद्र में पेट्रोलियम, वस्त्र एवम श्रम राज्य मंत्री रहे। अब लोकसभा की सरकारी उपक्रमों संबंधी समिति के सभापति पद पर हैं। 8 बार के सांसद रहने का उनके नाम का रिकार्ड रहा। बरेली में जिसे तोड़ने का अब शायद ही कोई प्रयास कर सके । स्वभाव से शालीन संतोष गंगवार मंत्री रहते भी बिना किसी सिक्योरिटी के शहर में मोटर साइकिल पर भी पीछे बैठे कही भी नजर आ जाते हैं। उनके साले वीरेंद्र गंगवार वीरू जिला सहकारी बैंक में सभापति हैं। अर्बन कोऑपरेटिव बैंक, बरेली की सभापति उनकी पत्नी सौभाग्य गंगवार हैं। बरेली की राजनीति में परिवारवाद की बात की जाए तो उनमें कुंवर सुभाष पटेल आगे हैं जो स्वम् विधायक, नगर निगम में मेयर रहे। उनके पुत्र प्रशांत पटेल बरेली कॉलेज में छात्र संघ अध्यक्ष रहे। अब परिवार में ही पुत्रवधु रश्मि पटेल बीजेपी की बरेली जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। कांग्रेस के धर्मदत्त वैध विधायक, मंत्री रहे । उनके पुत्र भी कांग्रेस के मीरगंज से विधायक रहे। अशफाक अहमद बरेली कैंट से विधायक रहे । उनके पुत्र इस्लाम साबिर विधायक एवम पौत्र शहजिल इस्लाम भी विधायक एवम मंत्री रहे। शहजिल इस्लाम भोजीपुरा से सपा टिकट के लिए दावेदार हैं। कांग्रेस के ही प्रवीण सिंह एरन वर्ष 2009 में सांसद, विधायक मंत्री रहै। उनकी पत्रकार पत्नी कांग्रेसी श्रीमती सुप्रिया एरन भी बरेली नगर निगम में मेयर रहीं अब वह ही कैंट से टिकट की दावेदार हैं। सतीश चंद्र अग्रवाल, भी संसद रहे। बरेली में अगर विधायकगणों की बात की जाए तो चेतराम गंगवार नवाबगंज एवम रामेश्वर नाथ चौबे सुनहा सीट से कई बार विधायक रहे। रामेश्वर नाथ चौबे के पुत्र मुन्ना चौबे बरेली कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष रहे। चेतराम गंगवार के परिवार के भुजेन्द्र गंगवार अब बीजेपी टिकट के लिए नवाबगंज से दावेदार हैं। केसर सिंह विधान परिषद और नवाबगंज से विधायक भी रहे। हरीश कुमार गंगवार सांसद, विधायक एवम मंत्री रहे। उनके पुत्र देवेश गंगवार मेयर का चुनाव लड़े पर हार गए। भानु प्रताप सिंह विधायक उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे। पर उनकी पुत्री श्रीमती तेजेश्वरी सिंह को राजनीति में अधिक सफलता नहीं मिली। उनके ही परिवार के नरेंद्र प्रताप अवश्य विधायक रहे। बुधौली के आछु बाबू भी सांसद रहे। जनता पार्टी में सर्वराज सिंह सुनहा से विधायक एवम आंवला से सांसद रहे। उनकर पुत्र चुनाव लड़े पर सफलता नहीं मिली। बहेड़ी से राम मूर्ति जी विधायक, मंत्री एवम बरेली से 1977 में जनता पार्टी के सांसद बने। उनके पुत्र देव मूर्ति समाजवादी पार्टी से बरेली में विधायक का चुनाव लड़े पर सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने शिक्षा एवम चिकित्सा जगत में कदम बढ़ा कर श्री राम मूर्ति इंजीनियरिंग एवम मेडिकल कॉलेज खोल कर बरेली की जनता की सेवा में लग गए। ओम प्रकाश सिंह विधायक एवम मंत्री रहे। उनकी पुत्री सुमन लता सिंह भी विधायक रहीं।राजेश अग्रवाल बरेली से विधायक एवम बीजेपी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष आज भी हैं। प्रदेश सरकार में मंत्री एवम विधानसभा में उपाध्यक्ष भी रहे। उनके पुत्र मनीष अग्रवाल भी अब बीजेपी में टिकट के दावेदार हैं। ठाकुर राजवीर सिंह जनसंघ, बीजेपी के कद्दावर नेता रहे। आवला से सांसद रहे। उनके पुत्र धीरेंद्र वीर सिंह धीरू अब सपा में किस्मत आजमा रहे हैं। । अजय कुमार अग्रवाल नगर बीजेपी के नगर अध्यक्ष रहे। उनके भाई प्रेम प्रकाश अग्रवाल सराफ बरेली शहर से कांग्रेस टिकट पर 2017 में विधायक का चुनाव भी लड़े पर सफलता नहीँ मिली। डॉ दिनेश जौहरी बरेली से बीजेपी विधायक एवम उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार में स्वास्थ्य मंत्री भी रहे। आजकल वह अपने पुत्र राहुल जोहरी को बीजेपी टिकट दिलाने की जोड़तोड़ में लगे है। वर्तमान में बीजेपी के 2 बार के साफ छवि के कर्मठ नगर विधायक रहे डॉ अरुण कुमार के सामने उनकी कितनी दाल गलती है। यह समय बतायेगा। डॉ अरुण के भाई अनिल कुमार सक्सेना एडवोकेट ने भी विधानसभा का चुनाव लड़ा पर सफलता नहीं मिली। आजकल वह बीजेपी के नेता हैं। सिया राम सागर फरीदपुर से विधायक रहे। उनके भाई चंद्र सेन सागर के भी विधायक चुनाव लड़ा।उनके साले भी बिल्सी बदायूं में विधायक रहे। बरेली नगर निगम में मेयर रहे राजकुमार अग्रवाल के पुत्र रवि प्रकाश अग्रवाल ने भी सपा टिकट पर विधायक का चुनाव लड़ा पर असफलता ही हाथ लगी। बाद में रवि प्रकाश राजनीति से दूरी बनाकर डॉ आई एस तोमर के प्रयास से रोटरी के गवर्नर बने। एकल राजनीति में राम सिंह खन्ना बरेली से विधायक बाद में नगर विकास मंत्री बने। अता उर रहमान, बहोरन लाल मौर्य, छत्र पाल सिंह, भगवत सरन गंगवार भी उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे। धर्मेंद्र कश्यप विधायक के बाद अब दूसरी बार भी आंवला से भाजपा के सांसद हैं। आँवला की सांसद श्रीमती मेनका गांधी केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री रहीं। उनके पुत्र वरुण गांधी भी पीलीभीत के बाद आजकल सुल्तानपुर से बीजेपी के सांसद हैं। वीर पाल सिंह भी राज्य सभा सदस्य रहे। आईं एस तोमर बरेली में 2 बार मेयर रहे । डॉ इकवाल सिंह तोमर ने बरेली में श्याम गंज का पुल, आई एम ए भवन, रोटरी भवन बनवा कर विकास पुरुष का नाम कमा पाए। डॉ तोमर रोटरी क्लब के भी गवर्नर रहे। नगर निगम में सतीश चंद्र कातिब उनकी पत्नी माया सक्सेना, राजेश अग्रवाल उनकी पत्नी शालिनी अग्रवाल, मास्टर किशन नारायण सक्सेना उनके परिवार की शालिनी जोहरी, वीर बहादुर सक्सेना उनके पुत्र सौरभ सक्सेना के अलावा गौरव सक्सेना, संजय राय उप सभापति भी नगर निगम में कई बार सभासद रहे। निर्भय सक्सेना
नवम्बर जयंती पर विशेष
“हिन्दी पत्रकारिता के भीष्म पितामह बाबूराव विष्णु पराड़कर
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हिन्दी पत्रकारिता का उदय ही देश में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने के लिए हुआ था ।जिन पत्रकारोँ ने अपने समाचार-पत्रों के माध्यम से स्वतंत्रता आन्दोलन को गति प्रदान करने का कार्य किया उनमें बाबू विष्णु राव पराड़कर का नाम अग्रिम पंक्ति में शामिल है ।
बाबूराव विष्णु पराड़कर भारत के उन महान पत्रकारों में से थे, जिन्होंने पत्रकारिता को न केवल नयी दिशा दी, बल्कि उसका स्वरूप भी सँवारा। उनका जन्म 16 नवम्बर, 1883 को वाराणसी में हुआ था। उन्होंने 1906 में पत्रकारिता जगत में प्रवेश किया और जीवन के अन्तिम क्षण तक इसी में लगे रहे। इस क्षेत्र की सभी विधाओं के बारे में उनका अध्ययन और विश्लेषण बहुत गहरा था। इसी से इन्हें पत्रकारिता का भीष्म पितामह कहा जाता है।
उन्होंने बंगवासी, हितवार्ता, भारत मित्र, आज, कमला तथा संसार का सम्पादन कर देश, साहित्य और संस्कृति की बड़ी सेवा की। वे महान क्रान्तिकारी भी थे। ब्रिटिश शासकों को खुली चुनौती देने वाले उनके लेख नये पत्रकारों तथा स्वाधीनता सेनानियों को प्रेरणा देते थे। देश के राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक नव जागरण में उनके लेखन का महत्वपूर्ण स्थान है।
उस समय समाचार जगत व्यापार नहीं था। लोग इसमें एक ध्येय लेकर आते थे। पत्र निकालने वाले भी उदात्त लक्ष्य से प्रेरित होते थे; पर पराड़कर जी ने दूरदृष्टि से देख लिया कि आगे चलकर इस क्षेत्र में धन की ही तूती बोलेगी। 1925 में वृन्दावन में हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने जो भविष्यवाणी की थी, वह आज प्रत्यक्ष हो रही है।
उन्होंने कहा था कि स्वाधीनता के बाद समाचार पत्रों में विज्ञापन एवं पूँजी का प्रभाव बढ़ेगा। सम्पादकों की स्वतन्त्रता सीमित हो जाएगी और मालिकों का वर्चस्व बढ़ेगा। हिन्दी पत्रों में तो यह सर्वाधिक होगा। पत्र निकालकर सफलतापूर्वक चलाना बड़े धनिकों या संगठित व्यापारिक समूहों के लिए ही सम्भव होगा।
पत्र की विषय वस्तु की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा था कि पत्र सर्वांग सुन्दर होंगे, आकार बड़े होंगे, छपाई अच्छी होगी, मनोहर, मनोरंजक और ज्ञानवर्धक चित्रों से सुसज्जित होंगे, लेखों में विविधता और कल्पनाशीलता होगी। गम्भीर गद्यांश की झलक और मनोहारिणी शक्ति भी होगी। ग्राहकों की संख्या लाखों में गिनी जाएगी। यह सब होगा; पर पत्र प्राणहीन होंगे। पत्रों की नीति देशभक्त, धर्मभक्त या मानवता के उपासक महाप्राण सम्पादकों की नीति न होगी। इन गुणों से सम्पन्न लेखक विकृत मस्तिष्क के समझे जायेंगे। सम्पादक की कुर्सी तक उनकी पहुँच भी न होगी।
बाबूराव विष्णु पराड़कर को भारत में आधुनिक हिन्दी पत्रकारिता का जनक माना जाता है। पत्रकारिता के विभिन्न अंगों के संगठन एवं संचालन की उनकी प्रतिभा व क्षमता असाधारण थी। वे कहते थे कि पत्रकारिता के दो ही मुख्य धर्म हैं। एक तो समाज का चित्र खींचना और दूसरा लोक शिक्षण के द्वारा उसे सही दिशा दिखाना। पत्रकार लोग सदाचार को प्रेरित कर कुरीतियों को दबाने का प्रयत्न करें। पत्र बेचने के लिए अश्लील समाचारों और चित्रों को महत्व देकर, दुराचारी और अपराधी का आकर्षक वर्णन कर हम अपराधियों से भी बड़े अपराधी होंगे।
पराड़कर ने जीवन भर हिन्दी पत्रकारिता और उसके उच्च आदर्शों की मशाल को जलाए रखा ।पत्रकारिता उनके लिये एक मिशन था महज प्रोफशन नहीं ।आज हिन्दी पत्रकारिता का फलक बहुत व्यापक हो गया है ।देश में इस समय हजारों पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हो रहीं हैं ।सैकड़ों हिन्दी चैनल्स चल रहें हैं । मगर पराड़कर जी की कही बातें आज सही साबित हो रही हैं । हिन्दी पत्रकारिता में बाजारवाद की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ती जा रही है जो गम्भीर चिंता का विषय है ।
भावी को स्पष्ट देखने और उसे डंके की चोट पर कहने वाले इस यशस्वी पत्रकार का 12 जनवरी, 1955 को शरीरान्त हुआ। आज बे हमारे मध्य नहीं है मगर पत्रकारिता के क्षेत्र में दिए सराहनीय योगदान के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा ।
सुरेश बाबू मिश्र सेवानिवृत प्रधानाचार्य बरेली उत्तर प्रदेश