बरेली में रहे कई विद्वानों ने देश प्रदेश में फहराई आर्य समाज की पताका : डॉ श्वेतकेतु शर्मा
बरेली। बरेली में कई आर्य समाज के विद्वानों ने देश प्रदेश में अपने प्रवचनों से लोगो को जागरूक किया और उन्हें भारतीय संस्कृति से भी अवगत कराने में अपनी अहम भूमिका भी निभाई जिम के आर्य विद्वान ने देश भर में अपनी अलग ही पहचान भी बनाई ।
0 शास्त्रार्थ महारथी पंडित बिहारी लाल शास्त्री इस युग में बरेली के महानतम वैदिक वाड्ग्मय के योद्धाओं में एक थे जिन्होंने शास्त्रार्थ व तर्क शैली के द्वारा सैकडों को नतमस्तक कर दिया था, देशभर में वैदिक ध्वजा को फैलाते हुये ऋषि के कार्यो को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। पंडित बिहारी लाल अनेक पुस्तकों के रचयिता प्रकाण्ड विद्वानों में थे । उनका जन्म मुरादाबाद के पगवाड़ा में 1890 में अयोध्या प्रसाद -लीलावती के यहां हुआ। तथा 96 वर्ष की आयु में उनका निधन 3 जनवरी 1986 को हुआ।
0 महामहोपाध्याय आचार्य विश्वश्रवा व्यास बरेली के मोती लाल बजरिया के निवासी तोता राम – धनवती के यहां हुआ था। जिन्होने विश्व स्तर पर वैदिक चिन्तन को रखा था। श्री व्यास अनेक वैदिक ग्रन्थो के रचयिता भी थे। संन्ध्या पद्दति मीमांसा उनका सुप्रसिद्ध ग्रन्थ था। अनेक ग्रन्थ लिखे थे परन्तु प्रकाशित नहीँ हो पाये ।वैदिक सिद्धांतों पर श्री व्यास को सर्वाधिकार था। यदि यह कहा जाय कि वह वैदिक सिद्धांतों के स्वयं प्रमाण थे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, उनके घर पर एक विशाल अद्भुत व अमूल्य, अप्राप्य ग्रन्थों का पुस्तकालय भी था, पुस्तकालय की प्रत्येक पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ उनके मस्तिष्क में था, अन्तिम दिनों में अस्वस्थता के कारण उनकी नेत्र ज्योति अत्यंत कम हो गई थी फिर भी अपने हाथ से पुस्तक अलमारी से निकाल कर प्रमाणित पृष्ट निकाल कर सामने रख देते थे। पुस्तकों से उनका इतना लगाव था कि किसी भी व्यक्ति को अपने पुस्तकालय में न तो घुसने देते थे और पुस्तकों को छूने भी नहीं देते थे। किसी को किसी पुस्तक की आवश्यकता हो तो नेत्रों से न देखने के बाद भी स्वयं को अपने ही हाथ से निकाल कर दे देते थे, वहअद्भुत ज्ञान के भन्डार थे । उनका निधन 1993 को हुआ।
0 वेद भारती डा. सावित्री देवी शर्मा वेदाचार्या बरेली नगरी को विश्व स्तर पर पहुंचाया था, पांच विषय में आचार्य, दो विषय में एम ए व पीएचडी थी । विश्व की प्रथम महिला वेदाचार्या, विश्व की चतुर्थ आर्य महिला विदुषी, शतपथ ब्राह्मण की भाष्यकार, शतपथ के प्रतीक नामक विशाल ग्रन्थ की रचयिता, वैदुष्य से ओत प्रोत, वेदों की प्रकान्ड विदुषी, सम्पूर्ण देश में वेदों के उपदेशों से जन जन में वैदिक क्रांति करने वाली,
अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित महिला थीं। सैकड़ो नारियों को संस्कृत भाषा व वेदों को पढ़ाकर स्त्रियो का सम्मान प्रदान कर वेदों को पढ़ने का अधिकारी बनाया । डॉ सावित्री के परिवार की मातृ भाषा भी संस्कृत ही थी । उनका जन्म 15 अप्रेल 1932 को बदायूं में राम स्वरूप पाराशरी – सुशील देवी के घर हुआ था। उनका निधन 27 नवम्बर 2005 को हुआ था।
0 आचार्य डा. विशुद्धा नन्द मिश्र
आर्य जगत के सुप्रसिद्ध प्रकान्ड विद्वान रहे। वह मूलतः बदायूँ के रहने वाले थे। उनका जन्म अयोध्या प्रसाद मिश्र के यहां 24 नबम्बर1924 को हुआ था । विशुद्ध नंद की पत्नी प्रकान्ड आर्य विदुषी आचार्या निर्मला मिश्रा पार्वती आर्य कन्या इन्टर काजेज में प्रधानाचार्य थी। उनके पुत्र मेघावृत मिश्र बदायूं में पत्रकार थे। आचार्य विशुद्ध नंद वेदार्थ कल्पदद्रुम विशाल ग्रन्थ के रचयिता थे। उनकी परिवार में भी मातृभाषा संस्कृत ही दिनचर्या में थी । व्याकरण, दर्शन व वेदों के अद्भुत विद्वान थे। डॉ विशुद्धा नन्द ने सम्पूर्ण देश में वेदों का प्रचार प्रसार किया था ।
गुरूकुल विश्वविद्यालय वृन्दावन के भी वह कुलपति भी रहे थे। उनका निधन 24 सितंबर 2012 को हुआ।
0 आचार्य रमेश चन्द्र पाठक वाचस्पति आर्य जगत के मूर्धन्य विद्वान रहे जिनको अनेकों ग्रन्थ कन्ठस्थ थे। कई विषयों में आचार्य व वाचस्पति की उपाधियों से सुशोभित थे । ऐसे आचार्य रमेश चन्द्र पाठक वाचस्पति मूलता ग्राम नरदौली जिला एटा के निवासी थे। परन्तु अध्ययन व अध्यापन के कारण अनेक वर्षों तक इटावा में रहे। वहीं संस्कृत विद्यालय में अध्यापन कार्य किया। आपकी पत्नी आर्य विदुषी डा. शारदा देवी पाठक आर्य कन्या इन्टर कालेज इटावा में प्रधानाचार्य रही थी । पत्नी के निधन के उपरांत कई वर्षो तक कन्या गुरूकुल सासनी, हाथरस में भी संस्कृत व्याकरण, साहित्य, दर्शन, वेद आदि का अध्यापन का कार्य किया। बाद में आर्य समाज बिहारी पुर बरेली में पुरोहित के पद पर वर्षो कार्य किया। यहीं से वेदों पर व्याख्यान द्वारा समाज को मार्ग दर्शन देते थे। व्याकरण, दर्शन व वेदों के अद्वितीय विद्वान थे। ऋषि दयानंद के विचारों व वेदों की सेवा करते हुये आर्यसमाज बिहारी पुर बरेली की गोद मे अद्भुत विद्वान चिरनिंद्रा में सो गया ।
0 स्वामी इन्द्र देव यती जी आर्य साहित्य के प्रकान्ड विद्वान थे। जीसुख राम आर्य – विलासो देवी के घर उनका7 सितंबर 1919 को जन्मे वेद वाक्यों को प्रमाणित दृष्टि से समाज के समक्ष रखने वाले स्वामी इन्द्र देव यती ने वैदिक विचारधारा को अक्षरक्षः प्रसारित किया। यही नही अपितु वैदिक राजधर्म के द्वारा आर्य राष्ट्र की परिकल्पना भी उनकी अपनी सोच थी। मूलतः पीलीभीत व बरेली के मध्य ग्राम शाही के निवासी थे। सौ वर्ष से अधिक स्वस्थ आयु को प्राप्त किया था । यति जी ने शाही में गुरूकुल की स्थापना की थी तथा बाल विद्या मन्दिर भी स्थापित किये जो आज भी चल रहें हैं । यति जी ने वर्षा यज्ञ पर विशेष अनुसंधान किया था व बरेली सहित अनेकों स्थानों पर यज्ञ के द्वारा वर्षा करवाकर प्रमाणित किया। स्वामी यति जी स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उनका 14 फरवरी 2013 को निधन हुआ।
0 स्वामी गोपाल सरस्वती
चारों आश्रमों के द्वारा अपने जीवन को सार्थक करने वाले अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त रहे। स्वामी गोपाल सरस्वती मूलतः बरेली में भूड़ के रहने वाले थे । उनका जन्म 22 अगस्त 1932 को केशव जी के यहां हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा बरेली में हुई थी। स्वामी जी का त्याग तपस्या से ओतप्रोत जीवन था। तीनों आश्रमों का नियमानुसार पालन करके चौथा आश्रम संन्यास के द्वारा समाज व राष्ट्र का अद्भुत कार्य किया। अनेक पुस्तकों के वह रचयिता थे। देश व विदेश में भी वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार किया। अनेक राष्ट्रीय सम्मानों से भी उनको सम्मानित भी किया गया। उनके जीवन की विशेष बात यह थी कि मृत्यु के बाद अपने देह को राजकीय आयुर्वेदिक कालेज , बरेली को दान देने के लिये संकल्प किया जो बाद में उनका देहदान किया गया।
0 डा. संतोष कणव वैदिक वाड्ग्मय व साहित्य के युवा सम्राट रहे। डा. संतोष कण्व का जीवन भी परम तपस्वी व आर्य समाज की विचार धारा के लिऐ समर्पित था। बरेली के चाहबाई में जगदीश बहादुर रायजादा – विद्या देवी के घर 10 जुलाई 1954 को जन्मे संतोष कण्व ने विवाह न करके पंतनगर विश्वविद्यालय से सर्वोच्च शिक्षा प्राप्त की। बाद में विश्व विद्यालय की नौकरी छोड़ कर अपना जीवन वैदिक सिद्धांतों के प्रचार प्रसार के लिये आर्य समाज बिहारीपुर, बरेली को समर्पित कर दिया था। आर्य समाज में ही रहना वहां की गतिविधियों के संचालन के साथ आर्य समाज अनाथालय, बरेली की देखभाल, अनाथ बच्चों की सेवा करना ही उनका मूल उद्देश्य था । राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रमों में वैदिक विचारों को प्रमाणित रूप से रखना व समाज को मार्गदर्शित करते थे। डॉ कण्व ने कई पुस्तकों की रचना भी की थी। उनके लेख देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुये। श्रैष्ठ पत्रकारों में आपकी गणना की जाती थी । दैनिक विश्व मानव समाचार पत्र में भी कार्य किया था । ऋषि विचारों का कार्य करते आर्य समाज बिहारीपुर की गोद में जीवन की 30 मई 2002 को अन्तिम सांस ली थी।
0 आर्य भजनोपदेशक मुरली धर
ऋषि दयानंद से प्रभावित हो कर उससे जुड़े। राष्ट्रीय स्तर पर भजनोपदेश के द्वारा वैदिक चिन्तन का प्रचार प्रसार करने वाले आर्य समाज भूड ,बरेली के भजनोपदेशक मुरलीधर ने वेदों का प्रसार किया। भजनोपदेशक के माध्यम से सैकडों लोगों को वैदिक सिद्धांतों व आर्य विचारों से ओतप्रोत किया। बरेली शहर की आर्य समाज के अलावा ग्रामीण अंचल की आर्य समाज में भजनोपदेश मुरलीधर के नाम से गांव के लोग उनका भजनोपदेशक सुनने को इकट्टे हो जाते है। उनकी आवाज में ऐसा जादू था कि भजन, गीत जो सुन लेता था वह दीवाना हो जाता था।भजनोपदेशक मुरलीधर का जीवन त्याग, तपस्या से ओतप्रोत अनुकरणीय था ।
0 डा. मृदुला शर्मा वैदुष्य से ओतप्रोत धाराप्रवाह में संस्कृत, अंग्रेज़ी, हिन्दी बोलने में सक्षम थी। हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी में एम ए व पी एच डी डा. मृदुला शर्मा ने की । आर्य विचारों से जीवन को सुव्यवस्थित करने वाली बरेली की विदुषी कवियित्री के रूप मे विख्यात थी । रिक्खी सिहं इन्टर कालेज, बरेली में अंग्रेज़ी की प्रवक्ता होने पर भी हिन्दी व संस्कृत में मन्त्रमुग्ध करने वाली काव्य रचना करती थी। मन्चों पर हिन्दी व संस्कृत में काव्यपाठ करती थी। डॉ मृदुला सुप्रसिद्ध आर्य विद्वान आचार्य विशुद्धानंद मिश्र जी की पुत्री थी । बरेली की आर्य विभूतियों में वह आर्य समाज के मंन्चों से वेदों पर व्याख्यान भी देती थी। अल्प अवस्था मे ही आप बरेली को गौर्वान्वित करते हुये इस संसार से चली गई। 0 डा महाश्वेता चतुर्वेदी बरेली को गौरवान्वित करने वाली साहित्य भूषण पुरस्कार से अलंकृत रहीं। डा महाश्वेता चतुर्वेदी मीरगंज महाविद्यालय में हिन्दी की प्रोफेसर पद से सेवानिवृत हुईं। हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी तीनों भाषाओं पर समान अधिकार था। तीनों भाषाओं में आपने अनेक साहित्यिक पुस्तकों की रचना की। लेखिका, कवियत्री, चिंन्तक, विचारक थी। आर्य समाज के मंचों से वेदों पर उनके व्याख्यान जन सामान्य को प्रभावित करने वाले होते थे। विश्व के अनेक देशों में हिन्दी व वेदों का प्रचार के अलावा विश्व हिन्दी सम्मेलन में भारत देश का प्रतिनिधित्व भी किया था। हिन्दी के अतिरिक्त ऋग्वेद व अथर्ववेद का रहस्य पुस्तकें भी लिखी थी ।
0 डा. सुरेन्द्र शर्मा शास्त्री वेद वेदांगों व आयुर्वेद के प्रकान्ड पन्डित थे। आचार्य डा. सुरेन्द्र शर्मा ने आर्य समाज भूड, बरेली की संस्कृत पाठशाला में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की । यह वह समय था जब स्वतन्त्रता आन्दोलन का दौर था । बहुत छोटी अवस्था में स्वतन्त्रता आन्दोलन में उनकी सक्रिय भूमिका रही। आर्य समाज के क्रान्तिकारियों के साथ रहना, जेल में भोजन पहुंचाना उनका प्रमुख कार्य था। आप आर्य समाज भूड़ में रहते हुये वैदिक सिद्धांतों में अटूट निष्ठावान थे। भूड आर्य समाज संस्कृत पाठशाला की शिक्षा पूर्ण होने के बाद आपने आयुर्वेदिक कालेज पीलीभीत से आयुर्वेदाचार्य (बी आई एम एस ) की उपाधी ग्रहण कर उ प्र के अनेक राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय में चिकित्साधिकारी के पद पर कार्य किया। आप चलता फिरता आर्य समाज थे । आयुर्वेद के साथ आप वेदों के प्रकान्ड विद्वान थे ।सेवानिवृत्त के बाद वेदों पर व्यख्यान के द्वारा वर्षो प्रचार किया था । देश के कोने कोने में आर्य समाज के माध्यम से सैकड़ो लोगों को श्रैष्ठतम बनाया ।
आर्योदय को प्रतिष्ठित करे वाली बरेली की आर्य विभूतियां
महर्षि दयानंद के बरेली पदार्पण के बाद स्थानीय लोगों में अद्भुत उत्साह देखने को मिला। बरेली में प्रमुख आर्य विभूतियां
0 डा. सत्य स्वरूप पेशे से सुप्रसिद्ध चिकित्सक, आर्य समाज बिहारीपुर व आर्यसमाज अनाथालय के प्रधान रहे। विद्यार्य सभा की स्थापना करके पांच शैक्षिक संस्थाओं को स्थापना की। कर्मठ लगनशील व वैदिक सिद्धांतों के मजबूत व्यक्तित्व थे। बरेली नगर के लिये शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य किया था ।
0 कु सत्यभामा ने वैदिक विचारों का जीवन में आत्मसात किया था। आर्य स्त्री समाज की स्थापना की थी। बालिकाओं की शिक्षा के लिये स्त्री सुधार विद्यालय की स्थापना में सत्यभामा जी का अपूर्व योगदान था। स्त्रियों के उत्थान व वेद पढ़ाने के लिये सर्वदा तत्पर रहती थी। उनके द्वारा स्थापित स्त्री आर्य समाज आज भी गतिशील है ।
0 वैद्य भद्रगुप्त डाबर वाले आर्य समाज बिहारीपुर व अनाथालय के प्रधान रहे। आपके समय में आर्य समाज प्रगतिशील होता चला गया। विभिन्न व्याधियों से आर्य समाज व अनाथालय को बचाने में आपका अपूर्व योगदान था। आप सुयोग्य वैध व डाबर की एजेन्सी चलाते थे।
0 जगदीश शरण आर्य तोपखाने वाले आर्य समाज व अनाथालय के प्रधान रहे । महर्षि दयानंद के वैदिक विचारों को प्रचार प्रसार का घर घर जाकर अमूल्य कार्य किया, शुद्धि के कार्य में भी उनका योगदान रहा ।। 0 आचार्य अशर्फी लाल आर्य भी आर्य समाज बिहारीपुर के कर्मठ कार्यकर्ता थे। वह मंत्री व प्रधान भी रहे व महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन भी किया था। के डी ई एम इन्टर कालेज में प्रवक्ता के पर पर कार्य रत थे ।
0 आचार्य सतीश चन्द्र शास्त्री संस्कृत व वैदिक साहित्य के अद्भुत विद्वान थे । सतीश जी आर्य समाज के मंचों से वैदिक ज्ञान पर उपदेश प्रदान करते थे। आर्य समाज भूड़ के प्रधान भी रह चुके थे तथा आर्य समाज भूड़ के विकास के लिए विभिन्न दायित्वों का निर्वहन भी किया। आप के डी ई एम इन्टर कालेज में संस्कृत के प्रवक्ता से सेवानिवृत्त हुये। लेखक, विचारक, चिन्तन व समाज सुधारक भी थे ।
0 श्री कृष्ण आर्य का भी आर्य समाज के प्रचार प्रसार में योगदान था। आर्य समाज जगतपुर की स्थापना से लेकर उसके प्रधान रहे । बाद में जिला आर्य प्रतिनिधि सभा के वर्षो प्रधान रहे थे ।ग्रामीण अंचल में आर्य समाज की स्थापना व उनके उत्थान मे अनुकरणीय योगदान था। शुद्धि के कार्य में निर्भिकता से कार्य किया था ।मानवीय मूल्यों के उत्थान व प्रगति से सदा चिन्तित रहते थे।
0 फतेह बहादुर एडवोकेट आर्य समाज बिहारीपुर व अनाथालय के सक्रिय सदस्य थे। आपने वैदिक सिद्धांतों के प्रचार का अनुपम कार्य किया था। अनाथालय के माध्यम से अनाथ असहाय बच्चों की सेवा में तल्लीन रहते थे। बरेली के सुप्रसिद्ध अधिवक्ता थे ।
0 चन्द्र नरायण सक्सेना एडवोकेटउर्फ भ्राता जी का आर्य समाज अनाथालय के विकास में अविस्मरणीय योगदान रहा है। अनाथालय के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन होकर अनाथ असहाय बच्चों की सेवा में सर्वदा क्रियाशील रहते थे। तन मन धन तीनों से समाज के असमर्थ लोगों के लिये वरद हस्त रहता था ।1902 में श्री प्रेम नारायण जी के पुराण शहर में उनका जन्म हुआ। दैनिक विश्व मानव, बरेली के लिए संपादकीय लेखन का कार्य, एवम नाटक का भी लेखन एवम मंचन भी किया।
0 आचार्य राम प्रसाद उपाध्याय आर्य समाज फरीदपुर के महत्वपूर्ण पदों पर रहते आर्य समाज की सेवा की थी । संस्कृत के प्रकान्ड विद्वान थे। आर्य समाज के मंचों से विभिन्न स्थानों पर उनके वेदों पर उपदेश हुआ करते थे । वैदिक विचारधारा के प्रसार प्रचार में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा। फरीदपुर इन्टर कालेज में आप संस्कृत के प्रवक्ता से सेवानिवृत्त थे ।
0 चमन लाल बाटला का भी बरेली के आर्य समाज के उत्थान व विकास में सक्रियता से योगदान था। आर्य समाज अनाथालय के द्वारा आपने बहुत कार्य किया था ।
0 कृष्ण विहारी लाल जौहरी आर्य समाज बिहारीपुर में आर्य समाज के प्रधान भी रहे थे।
0 रामाश्रय लाल आर्य समाज भूड के सक्रिय सदस्य थे । वहां के प्रतिनिधि के रूप में आर्य समाज अनाथालय के मंत्री रहते हुये समाज के उत्थान का अपूर्व कार्य किया था ।
0 राम नरायण अग्रवाल जूते वाले आर्य समाज बिहारीपुर में कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहते हुये आर्य समाज को आगे बढाने में अपूर्व भूमिका निभाई थी । 0 बलबीर सहाय जौहरी ने आर्य समाज को प्रगतिशील करने में सक्रियता से कार्य किया था।
0 कैलाश नरायण मेहर आर्य समाज बिहारीपुर व अनाथालय के प्रधान व मंत्री पद को सुशोभित किया था ।आपने महर्षि दयानंद के विचारों को जन जन तक पहुंचाने में अद्वितीय योगदान दिया था । समाज के उपर किसी प्रकार की परेशानी होने पर वह मदद को तत्पर रहते थेयदि यह कहा जाये तो अतिशयोक्ति न होगी कि मेहरा साहब आर्य समाज के प्राण थे।
0 श्रीमती कृष्णा बजाज आर्य स्त्री समाज की सक्रीय सदस्या व प्रधान व मंत्री पर को सुशोभित किया। बाद में आर्य समाज माडल टाउन की भी सक्रिय सदस्य रहीं । आर्य समाज माडल टाउन में स्त्री आर्य समाज की स्थापना भी की थी । आप जीवन के अन्तिम क्षण तक आर्य समाज माडल टाउन की संरक्षिका थीं।आप अत्यंत अध्ययन शील लेखिका ,कवियत्री व व्याख्यान के द्वारा विषय का प्रतिपादन अतिसुन्दर रूप से करती थीं। आप श्री लक्ष्भीनारारण जूनियर हाईस्कूल में अध्यापिका भी थी ।समाज को वैदिक चिन्तन द्वारा संस्कार वान बनाने केलिए सर्वदा प्रयत्नशील रही, दैनिक यज्ञ व संध्या वन्दन उनके जीवन सर्वश्रेष्ठ कर्म था ।
0 राजेन्द्र नाथ गुप्ता आर्य समाज जगतपुर की स्थापना काल के सदस्य थे । वर्षो समाज के प्रधान पद को सुशोभित किया था। वैदिक सिद्धान्तो में अटूट निष्ठावान थे। इनका सम्पूर्ण जीवन वैदिक विचारों से आओतप्रोत था। आर्य समाज के माध्यम से श्रृषि विचारों क्षको जन जन तक पहुंचाने का कार्य किया था ।इसके अतिरिक्त हजारों कार्यकर्ताओं ने महर्षि दयानंद के पदार्पण के वाद वैदिक मिशन को जन सामान्य तक पहुंचाने में पर्दे की पीछे काम किया था। अनेकों कष्ट उठाते हुये तन मन घन से आर्य समाज को सर्वोच्च शिखर पर पहुचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था और किण्वन्तोविश्मार्यम् के ऋषि स्वप्न को साकार किया ।