संगोष्ठी आयोजित कर एनएसएस ने मनाया मानसिक स्वास्थ्य दिवस
बदायूं।विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर राजकीय महाविद्यालय में संचालित राष्ट्रीय सेवा योजना के द्वारा वर्चुअल संगोष्ठी आयोजित किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता समाजशास्त्र के प्रोफेसर डॉ सतीश सिंह यादव ने किया तथा संचालन एनएसएस के जिला नोडल अधिकारी डॉ राकेश कुमार जायसवाल ने किया। संगोष्ठी में इस बात पर बल दिया गया कि भारत को प्रगति के पथ पर ले जाने के लिए समस्त जन का मानसिक रूप से स्वस्थ होना आवश्यक है और इसके लिए उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नित नए अनुसंधान, जागरूकता कार्यक्रम और मुस्कुराएगा इंडिया पहल के अंतर्गत कार्यक्रम अधिकारियों के द्वारा की जा रही काउंसलिंग में गति प्रदान करने की आवश्यकता है।
डॉ सतीश सिंह यादव ने कहा कि लोभ,मोह,माया,ईर्ष्या,क्रोध और वासना की अति यह सभी मानसिक स्वास्थ्य में विकार के लक्षण है।उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचारी और कुकर्मी लोग पूर्णतया मनोरोगी होते हैं।डॉ राकेश कुमार जायसवाल ने कहा कि मिशन शक्ति अभियान के अंतर्गत नारी की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि पुरुषों का मानसिक स्वास्थ्य बना रहे और कुकर्मी लोगों को चिन्हित कर उनके अपराध को सिद्ध कर जेल में डाला जाए तथा अपराध सिद्ध ना होने की स्थिति में उनकी मानसिक काउंसलिंग कर उन्हें सदमार्ग पर ले जाने का प्रयास किया जाए। यह कार्य शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग ही कर सकते हैं। राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर डॉ राजधारी यादव ने रिश्वतखोरी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि दूरदृष्टि के अभाव में रिश्वतखोर अंत में जेल के अंदर ही स्वयं को पाता है पहले से मानसिक रूप से रोगी होने के बाद और भी मानसिक रूप से रोगी हो जाता है तथा आत्महत्या की ओर कदम बढ़ाता है।गणित विभाग के प्रभारी डॉ नीरज कुमार ने कहा कि रोगियों का अंतिम मंजिल दूसरे की हत्या या आत्महत्या ही होता है। गणित के प्रोफेसर डॉ सचिन राघव ने कहा कि अत्यधिक फास्ट फूड,माँसाहार, मादक पदार्थों का सेवन,शराब,नमक और वसा का सेवन भी मानसिक स्वास्थ्य के लिए घातक है। इतिहास विभाग के प्रोफेसर डॉ संजय कुमार ने कहा कि प्राचीन भारतीय सभ्यता संस्कृति से विमुख होकर पाश्चात्य सभ्यता संस्कृति की चकाचौंध में व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ हो रहा है।सँयुक्त परिवार का अभाव असफल वैवाहिक जीवन के कारण हो रहा वैयक्तिक व सामाजिक विघटन भी मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर कर रहा है। राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर डॉ दिलीप वर्मा ने कहा कि कोई भी व्यक्ति अपने पद प्रतिष्ठा से संतुष्ट ना होकर दिखावा करता है तो यह भी एक प्रकार का मनोरोग है। उन्होंने कहा कि हास्यास्पद स्थिति यह है कि अति प्रतिष्ठित आचार्य के पद को धारण करने वाला विद्वान भी नौकरशाही के आकर्षण में फंस कर अपनी पहचान छुपाता है और नौकरशाह होने का दावा करता है। अंत में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर डॉ मिथिलेश कुमार ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया करते हुए कहा कि समय आ गया है कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के क्षेत्र से जुड़े हुए विद्वान साथी नवोन्मेष करें।
इस अवसर पर डॉ ज्योति बिश्नोई, डॉ प्रेमचंद,एकता सक्सेना,अंशुल कुमार, रितिक सिंह,नीरज यादव,अलीना आफाक,कनिष्का दीक्षित,मुकुल राठौर, दीप्ति राठौर, अंशिका सोलंकी, पारुल तोमर, वैष्णवी गुप्ता, ज्योति गुप्ता आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।