साहित्यिक संस्था आचमन की ओर से महिला साहित्यकारों की काव्य गोष्ठी हुई

बदायूं। साहित्यिक संस्था आचमन की ओर से महिला साहित्यकारों की गोष्ठी शब्दिता के अंतर्गत आज प्रोफेसर कॉलोनी में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
सर्वप्रथम माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया तत्पश्चात गोष्ठी प्रारम्भ हुई।
इस अवसर पर स्वरचित कविताएं एवं अपने किसी प्रिय कवि की रचनायें भी पढ़ी गयीं।
ममता ठाकुर ने कहा –
बदरा तुम कब आओगे,बदरी भी नही छा रही। झुलस गए वन, नदियां हैं सूख रहीं।
कवयित्री डॉ.शुभ्रा माहेश्वरी ने व्यंग रचना के माध्यम से सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव पर एक रचना सुनाई –
हम भी आनलाइन तुम भी आनलाइन,
खिंच गयी है शायद इसलिए ही लाइन।।
मां मुझे आनलाइन ही खाना खिला दो न।
कुछ मीठी -मीठी लोरी भी सुना दो न।
रील्स में तो ठुमके लगाकर रिझाती हो,
आज हमें भी आनलाइन ही सुला दो न।
ममता नौगरिया ने धूप और स्त्री पर रचना के माध्यम से रोचक और व्यंग्यात्मक छटा बिखेरी।
डॉ गायत्री प्रियदर्शनी ने एक प्रेम गीत सुनाया साथ ही सावन पर उनकी विशेष प्रस्तुति ने सबका मन मोहा।
सावन में तर-ब – तर
मेरा शहर!
हम – तुम मिले
मिल कर खिले
लो
जल उठे दिए
डॉ.सरला चक्रवर्ती ने ज़िंदगी के विविध रूपों को अपने गद्य पाठ से निरूपित किया।
डॉ. गार्गी बुलबुल ने बेटी और परिवार पर आधारित रचना सुना कर सबको भावुक कर दिया।
शिक्षिका शारदा बावेजा ने राधा कृष्ण के प्रेम से ओतप्रोत रचना का पाठ किया।
डॉ. कमला माहेश्वरी की ग़ज़ल सबको बेहद पसंद आयी।
डॉ. प्रतिभा मिश्रा ने मौसम के अनुकूल एक भक्ति रचना में सावन और भगवान श्री कृष्ण पर आधारित एक गीत प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर उषाकिरण मिनोचा ने कार्यक्रम में सबकी प्रस्तुति पर सारगर्भित उद्बोधन दिया।
गोष्ठी की आयोजिका एवं संस्था की संस्थापक डॉ. सोनरूपा विशाल ने अपने बुज़ुर्गों और उनके साथ गयी परम्पराओं को याद करते हुए एक गीत सुनाया।
दादी माँ का जाना अब तुलसी को भी खलता है।
साँझ हो गयी चौरे पर जब दीप नहीं जलता है।
इस अवसर पर कुसुम रस्तोगी, मंजुल शंखधार, सुषमा भट्टाचार्य समेत संस्था के अनेक सदस्य उपस्थित रहे।
गोष्ठी का सफल संचालन डॉ.सोनरूपा ने किया एवं अंत में उन्होंने सभी का आभार व्यक्त किया।