खानकाहे नियाज़िया में जश्ने चिरागा में मांगी मन्नत
बरेली। लगभग 250 वर्ष पूर्व हज़रत गोसुलआज्म रजी-अल्लाहअन्हो ने सपने में हज़रत शाह नियाज् रजी अल्लाह अन्हों को बिशारत दी कि 17 रबीउस्सानी (हज़रत गोस पाक के विसाल के दिन) को गोस पाक के नाम का चिरागां किया जाये। इस दिन जो गोस पाक के नाम का मन्नत का चिराग उठायेगा उसकी मन्नत अल्लाह तआला इन्शाल्ला गोस पाक के सदके में हज़रत शाह नियाज़ के वसीले से एक साल के अन्दर पूरी कर देगा। जब आज तक गोसुल आज़म दस्तेगीर (रज़) का यह फैज़ हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब किबला के वसीले से जारी है और इन्शाल्ला क़यामत तक जारी रहेगा । खानकाहे आलिया नियाज़िया में आज हजरत गोस पाक के नाम के जशने चिरागों का दृश्य अनोखा व निराला था। चारों तरफ मन्नतों के चिराग रोशन थे इन चिरागों की रोशनी अकीदतमन्दों के दिलों की उम्मीदों की रोशनी को व्यक्त कर रही थी। हर व्यक्ति चाहे हिन्दू हो या मुसलमान या किसी भी सम्प्रदाय का हो यहाँ सिर्फ एक ही रंग में रंगा हुआ था। अकीदत व श्रृद्धा से शराबोर हर व्यक्ति हाथों में चिराग लिये या चिराग लेने की उम्मीद लिये अपनी दुआओं और प्रार्थनाओं में व्यस्त था। साम्प्रदायिक सद्भावना का अद्भुत दृश्य था। किसी को किसी की खबर नहीं थी हर व्यक्ति मन्नत का चिराग हासिल करने के लिए लम्बी कतारों में लगे थे और इस दृढ़ निश्चय के साथ कि आज चाहें कितनी देर हो जाये लेकिन मन्नत का चिराग जरूर लेकर जाना है इस मन्नत पर ढेर सारी उम्मीदें टिकी हुई हैं और अगर आज यह मौका निकल गया तो फिर साल भर के बाद आयेगा । इतनी भारी भीड़ के बाबजूद लोग अदब, संयम व अनुशासन के साथ लाइन में लगे हुए अपनी बारी का इन्तजार कर रहे थे। मन्नतों के चिराग सज्जादा नशीन हजरत हजरत मेंहदी मियां साहब द्वारा देर रात तक बॉटे जाते रहे। कव्वाली के बाद देर रात हजरत गोसुल आजम व हजरत महबूबे इलाही निजामुद्दीन औलिया रजीअल्लाह अन्हुम का कुलशरीफ सम्पन्न हुआ। सज्जादा साहब ने अमने आलम मुल्क कौम व हाज़रीन के लिए दुआ फरमाई। जशने चिरांगा की सारी व्यवस्थायें प्रबन्धक जुनेदी मियां नियाज़ी साहब द्वारा देखी गई उनका सहयोग खानदान के अन्न अफराद मुरीदीन व उनके सचिव मोलाना कासिम का विशेष सहयोग रहा।

लाइन में खड़े लोगों का शर्बत तकसीम होता रहा। मेडिकल कैम्प पर बीमारों का उपचार चलता रहा। इस दौरान माइक पर ऐलान के साथ साथ हजरत गोस पाक हज़रत महबूबे इलाही की शान में मनकबतें पढ़ी जाती रहीं। गोस पाक के सदके में कुतबे आलम हजरत शाह नियाज के बसीले से अल्लाह ताला की बेहिसाब इनायतो करम का यह मन्जर देखकर शायद की जबान पर बेसाखता यह अशआर आ रहे थे। अपनी हर मुश्किल को आसा कीजिये । गोसे आजम का चिराग कीजिये । गोंस का सदका नियाज़ी सिलसिला लेके अपने गम का दरमा कीजिये ।




















































































