बरेली । शिक्षा के अधिकार कानून का अनुपालन नहीं करने पर सरकारी वित्त पोषित व सहायता प्राप्त मदरसों को बंद करने की NCPCR ने की थी सिफारिश।दरअसल एक मुस्लिम संगठन ने कहा कि इस कार्रवाई ने अल्पसंख्यकों के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रबंधन के अधिकार का उल्लंघन किया है।CJI डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने केंद्र और राज्यों सरकारों को NCPCR की सिफारिश पर कार्रवाई करने से रोका।सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया।सुप्रीम कोर्ट ने गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर करने के यूपी सरकार के फैसले पर भी रोक लगाई। इस पर ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन वरेली ने बयान दिया है और उन्होंने कहा है कि एनसीपीआरसी की दलीलों को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है और अब पूरे भारत के मदरसे जिस तरह पहले संचालित हो रहे थे वैसे ही संचालित होंगे ।एनसीपीआरसी के अध्यक्ष ने कई राज्यों को पत्र लिखा था। जिसमें कहा था कि मदरसों की फंडिंग पर रोक लगाना चाहिए साथही आयोग के अध्यक्ष ने उत्तर प्रदेश के मद्रास के मामले में चल रही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई में शामिल थे , उसे पर सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला देते हुए खारिज कर दिया है सुप्रीम कोर्ट की इस फैसले को हम स्वागत करते हैं, आप तमाम बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं होगा और जैसे मदरसे चल रहे थे वैसे ही मदद से चलते रहेंगे मौलाना ने आगे कहा कि मदरसों पर आपत्ति करने वालों को मदरसों का इतिहास पढ़ना चाहिए, 1857 की जंगो आजादी में दिल्ली जामा मस्जिद से अंग्रेजों के खिलाफ फतवा देने वाले अल्लामा फज्ले हक खैराबादी मदरसे के ही छात्र थे। बरेली नौमैला मस्जिद से अंग्रेजों के खिलाफ जंग का ऐलान करने वाले मौलाना राजा अली खां बरेलवी मदरसे के ही छात्र थे। इंक्लाब जिंदाबाद का नारा देने वाले मौलाना हसरत मूहानी लखनऊ मदरसे के ही छात्र थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मदरसों में खुशी की लहर दौड़ गई है।