मुमुक्षु आश्रम में रासलीला में उमड़ी श्रद्धालुओं की भारी भीड़, देवकीनंदन महाराज की टीम ने किया मंचन
शाहजहांपुर। शहर में पहली बार गीता जयंती के अवसर पर मुमुक्षु आश्रम में मुमुक्षु आश्रम टॣस्ट की ओर से आयोजित गीतोउपदेश (कृष्ण लीला) का मंचन विश्व प्रसिद्ध रासाचार्य श्रीमद् स्वामी देवकीनंदन जी महाराज की रासलीला मंचन के अंतिम दिन श्री कृष्ण लीला के मंचन, ब्रज की होली, भीष्म प्रतिज्ञा तथा गीता उपदेश की लीलाओं का मंचन किया गया। गीता उपदेश लीला में महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कर्म ही पूजा है. कर्म ही भक्ति है, उन्होंने अर्जुन से कहा-जो भी कर्म करो, यह सोचकर करो कि वह परमात्मा को समर्पित होता है।भगवान कृष्ण कहते हैं- संसार के निर्माण के बाद से ही जन्म और मृत्यु का चक्र चलता आ रहा है और यह प्रकृति का नियम है. ‘जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु अवश्य होती है और मृत्यु के बाद जन्म अवश्य होता है, इसलिए मृत्यु से भयमुक्त होकर वर्तमान में जीना चाहिए.’महाभारत के दौरान अर्जुन विचलित थे और उनसे शस्त्र भी नहीं उठ रहे थे. तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- समय बड़ा बलवान है. यदि तुम सोचते हो कि तुम शस्त्र नहीं उठाओगे तो इन पापियों का संहार नहीं होगा. अरे अर्जुन! तुम तो एक निमित्त हो, इनका संहार लिखा है और वह जरूर होगा। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा- ‘भूत और भविष्य की चिंता करना व्यर्थ है, वर्तमान ही सत्य है.’ जब असमंजस की स्थिति में रहो और कुछ समझ ना आए तो सब परमात्मा पर छोड़ दो और बस अपना कर्म करो।परिस्थितियां कितनी भी बुरी क्यों न हों, यही सोचो कि समय सबसे बड़ा बलवान है. अच्छा हो या बुरा, बीत जाएगा। इसके उपरांत भीष्म प्रतिज्ञा लीला के मंचन में दिखाया गया कि गंगा के स्वर्ग चले जाने के बाद शांतनु को निषाद कन्या सत्यवती से प्रेम हो गया। वे उसके प्रेम में तड़पते थे। महाराज की इस दशा को देखकर देवव्रत को चिंता हुई। वे निषाद के घर जा पहुंचे और उन्होंने निषाद से कहा, ‘हे निषाद! आप सहर्ष अपनी पुत्री सत्यवती का विवाह मेरे पिता शांतनु के साथ कर दें। मैं आपको वचन देता हूं कि आपकी पुत्री के गर्भ से जो बालक जन्म लेगा वही राज्य का उत्तराधिकारी होगा। कालांतर में मेरी कोई संतान आपकी पुत्री के संतान का अधिकार छीन न पाए इस कारण से मैं प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं आजन्म अविवाहित रहूंगा।’उनकी इस प्रतिज्ञा को सुनकर निषाद ने हाथ जोड़कर कहा, ‘हे देवव्रत! आपकी यह प्रतिज्ञा अभूतपूर्व है।’ इतना कहकर निषाद ने तत्काल अपनी पुत्री सत्यवती को देवव्रत तथा उनके मंत्रियों के साथ हस्तिनापुर भेज दिया। देवव्रत जब निषाद कन्या सत्यवती को लाकर अपने पिता शांतनु को सौंपते हैं तो शांतनु की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। शांतनु प्रसन्न होकर देवव्रत से कहते हैं, ‘हे पुत्र! तूने पितृभक्ति के वशीभूत होकर ऐसी कठिन प्रतिज्ञा की है, जो न आज तक किसी ने की है और न भविष्य में कोई करेगा। तेरी इस पितृभक्ति से प्रसन्न होकर मैं तुझे वरदान देता हूं कि तेरी मृत्यु तेरी इच्छा से ही होगी। तेरी इस प्रकार की प्रतिज्ञा करने के कारण तू ‘भीष्म’ कहलाएगा और तेरी प्रतिज्ञा भीष्म प्रतिज्ञा के नाम से सदैव प्रख्यात रहेगी।’ कलाकारों ने लीलाओं का भावपूर्ण मंचन कर दर्शकों को भावविभोर कर दिया।विदूषक के रूप में ‘मनसुखा’ ने साथ-ही-साथ दर्शकों का भी मनोरंजन किया। आज अंतिम दिन लीला के बाद फूलों की होली खेली गई। आज की रासलीला का शुभारंभ का पूजन एस एस कालेज के प्राचार्य प्रो. आर. के. आजाद, राम सागर यादव ने किया। समापन पर आरती उद्योग पति राम चंद्र सिंघल व उनकी पत्नी तथा डा. प्रभात शुक्ला व उनकी पत्नी डा. मीना शर्मा, सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष दल सिंह यादव ने की। इस मौके पर एसएसएमवी के सचिव अशोक अग्रवाल, रामनिवास गुप्ता, सुयश सिन्हा,चंद्रभान त्रिपाठी, डा. अमीर सिंह यादव,अवनीश सिंह चौहान, शिव ओम शर्मा, आदि मौजूद रहे।